26 फ़रवरी, 2010

होली














जब चली फागुनी बयार
मन झूम-झूम कर गाने लगा
सुने ढोलक की थाप पर
जब रसिया और फाग
 बार-बार गुनगुनाने लगा |
सरसों फूली टेसू फूला
वन उपवन महका
मदमाता मौसम छाने लगा
मन झूम-झूम लहराने लगा |
अमराई में छाई बहार
कोयल की मीठी तान सुनी
तरह-तरह के फूल खिले
फूलों पर भौरे गुंजन करते |
लाल, हरे और रंग सुनहरे
गौरी की अलकों से खेले
चूड़ी खनकी पायल बहकी
गौरी का मुखड़ा हुआ लाल
जब अपनों का लगा गुलाल
प्यारा सा पाया उपहार
भरने लगा मन में गुमान
 तन मन  को भिगोने लगीं |
रंगों की दुकानें सजीं
गुजिया पपड़ी भी  बनीं
भंग और ठंडाई छनी
सब की होली खूब मनी |

आशा

2 टिप्‍पणियां:

  1. होली के ढेर सारी मधुर स्मृतियों को जगा गयी आपकी रचना ! आप सभी को होली की कोटिश: शुभकामनायें ! सुन्दर रचना !

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