27 मार्च, 2010

ऋण

आज बाजार में जब पहुँचीं,
कुछ भाव किये कुछ लेना चाहा,
गाड़ी की चाहत ने मुझको ,
एक शो रूम तक पहुँचाया ,
कमर तोड़ महँगाई ने ,
जब कर दीं सारी पार हदें ,
अपनी पहुँच से दूर बहुत ,
कीमत देख सर चकराया ,
होकर उदास घर लौट चली ,
मिनी मिली मुझे रस्ते में ,
उसने मेरी व्यथा सुनी,
पहले तो वह खूब हँसी ,
फिर सोच समझ कर बोल पड़ी ,
क्यों व्यर्थ ही चिंता करती हो ,
क्या कोई खाता नहीं बैंक में ,
जिसको अपना कहती हो |
मैंने पढ़ा सुबह पेपर में ,
ऋण को पाना बहुत सरल है ,
यदि प्रबल इच्छा हो मन में |
तुम भी ऋण पा सकती हो ,
फिर जो चाहो ले सकती हो |
मैंने मन मजबूत बनाया ,
बैंक पहुँच कर चैन आया ,
मैनेजर से हुई बात जब
उसने सहज परामर्श दिया |
बैंक सभी ऋण देता है ,
पर कई दस्तावेज भी लेता है ,
पूरी प्रक्रिया हो जाने पर ही ,
ऋण की स्वीकृति देता है |
ऋण चुक जाए तो अच्छा है ,
ना चुक पाए तो समस्या है ,
समस्या का समाधान हो सकता है ,
यदि मन में संकल्प और इच्छा है |
ऋण चुकाना कठिन नहीं होता ,
यदि किश्तों में चुका सकें उसको ,
थोड़ा ब्याज तो लगता है ,
पर जल्दी कर्ज उतरता है |
जब नई गाड़ी होगी ,
उसकी सवारी प्यारी होगी ,
जीने का मज़ा आ जायेगा ,
ऋण तो चुकता हो जायेगा |
पहले मन डावांडोल हुआ ,
क्या ऋण लेना उचित होगा ,
वह पागल ना जान पाया |
यह भी इतना ही सच है ,
जब तक ऋण चुकता ना हो ,
मन अशांत ही रहता है |
पर गाड़ी की याद मुझे ,
बारम्बार सताने लगी ,
ऋण की चिंता कौन करे ,
गाड़ी नजरों में छाने लगी |
सुबह हुई सबसे पहले ,
सारे कागज़ तैयार किये ,
जल्दी से फिर पहुँच बैंक में ,
सारे करार स्वीकार किये |
जैसे ही लोन मिला मुझको ,
जल्दी से पहुँची शो रूम ,
गाड़ी की बुकिंग कराई ,
यथा शीघ्र डिलीवरी चाही |
आज शाम तक मिल जायेगी ,
ऐसा आश्वासन पाया |
जब रंग की बात चली ,
सिल्वर सिल्की बतलाया |
जैसे ही घर गाड़ी आयी ,
कर्ज विचारों पर छाया ,
कैसे चुक पायेगा पैसा,
बार-बार विचार आया ,|
जब तक किश्त नहीं चुकती ,
गाड़ी अपनी नहीं लगती |
बच्चों ने समझाना चाहा ,
माँ व्यर्थ ही डरती हो ,
जो चमक दमक तुम्हें दिखती है ,
सब ऋण से ही तो मिलती है |
शायद ही कोई ऐसा घर हो ,
जहाँ ऋणी कोई ना हो |
धन चाहे कैसा भी आये ,
बस पैसा मिलता जाये ,
काम कोई ना रुक पाए ,
बस यही आज का फंडा है |


आशा

3 टिप्‍पणियां:

  1. धन चाहे कैसा भी आये ,
    बस पैसा मिलता जाये ,
    काम कोई ना रुक पाए ,
    बस यही आज का फंडा है |

    bilkul sahi keh rahi ho asha ji

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  2. आज की पीढी की मानसिकता का बहुत सटीक चित्रण ! एकदम यथार्थवादी रचना ! बहुत सुन्दर !

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