27 मार्च, 2010

अतिथि आज

कमर तोड़ मँहगाई है ,
संताप बढ़ाने आई है ,
बहुत मुसीबत लाई है ,
शक्कर का भाव बहुत अधिक है ,
दालों की हालत बहुत बुरी है ,
दूध फलों की कीमत देखो ,
सब और उदासी छाई है ,
ऐसे में जब अतिथि आये ,
बिना बात का कर्ज बढ़ाये ,
सारा बजट बिगाड़ कर जाये ,
वह तो माँगे शक्करपारे ,
यदि हलुआ भी हो साथ ,
खाये ले ले कर चटकारे ,
क्या नाश्ता रोज बनाऊँ,
खाने में क्या परिवर्तन लाऊँ ,
चिंता में नींद नहीं आती ,
रात यूँ ही गुजर जाती ,
पहले भी अतिथि आते थे ,
मन भर प्यार लुटाते थे ,
जब घर को वापिस जाते थे ,
माथे पर शल न आते थे ,
चमक दमक का दौर नहीं था
सत्कार सभी का मन से था ,
जीवन सफल समझते थे ,
जब घर में किसी को पाते थे ,
अब चिंता मुझे सताती है ,
बार-बार मुझे खाती है ,
किसी अतिथि के आने पर
यदि सत्कार न कर पाई ,
या कोई कमी रही बाकी ,
जग हँसाई हो जायेगी ,
बहुत मुसीबत आयेगी ,
पहले से यदि पता होता ,
थोड़ा उधार लिया होता ,
भार मुझे तब ना लगता ,
मन से सत्कार किया होता ,
कैसे सबसे नाता जोडूँ ,
इधर उधर कैसे दौडूँ ,
दो दिन की खातिर दारी में ,
पूरे माह तंगी झेलूँ ,
कोई ना मुझे समझ पाया ,
केवल कंजूस ही ठहराया ,
हे अतिथि तुम कब जाओगे ,
मन की खुशियां लौटाओगे ,
कष्ट मुझी को सहना है ,
मँहगाई में रहना है|
अधिक यदि तुम टिक जाओगे ,
पत्र पुष्प से भी जाओगे |


आशा

1 टिप्पणी:

  1. आज के दौर की सबसे बड़ी सच्चाई ! कमर तोड़ मँहगाई ने सारी सत्कार भावना को गौण कर दिया है ! हल्का होता पर्स सबकी चिंता का विषय है ! अच्छी पोस्ट ! बधाई !

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