20 मई, 2010

यादें बीते कल की

जब तुम इधर से गुजरती हो ,
पहली वर्षा की फुहार सी लगती हो ,
पुरवइया बयार सी लगती हो ,
तुम मुझे कुछ-कुछ अपनी सी लगती हो |
होंठों पर मधुर मुस्कान लिये ,
कजरारी आँखों में प्यार लिये ,
जब तुम धीमी गति से चलती हो ,
मुझे बहुत प्यारी लगती हो
बचपन में तुम्हारा आना ,
मेरेपास से हँस कर गुजर जाना ,
फूलों से घर को सजाना ,
गुड़ियों का ब्याह रचाना ,
और बारात में हमें बुलाना ,
फिर सब का स्वागत करवाना ,
सब मुझे सपना सा लगता है ,
तब भी तुम्हें देखने का मन करता है ,
अब मैं तम्हें दूर से देखता हूँ ,
क्योंकि अब तुम मेरी
बचपन की दोस्त नहीं हो ,
अब तुम मेरी निगाह में ,
हर बात में , जजबात में
मुझसे बहुत दूर खड़ी हो ,
यह निश्छल प्यार का बंधन है ,
बीते बचपन का अभिनन्दन है ,
कॉलेज में साथ पढ़ते हैं ,
फिर भी दूरी रखते हैं ,
हर शब्द सोच कर कहते हैं ,
शायद मन में यह रहता है ,
कोई गलत अर्थ न लगा पाये
व्यर्थ विवाद ना हो जाये ।
जब तुम भी कहीं चली जाओगी ,
मैं भी कहीं दूर रहूँगा ,
दोनों अजनबी से बन जायेंगे ,
यदि जीवन के किसी मोड़ पर मिले ,
बीते दिन छाया चित्र से नजर आयेंगे ,
यादों के सैलाब उमड़ आयेंगे ,
हम उनमें फिर से खो जायेंगे |


आशा

,

5 टिप्‍पणियां:

  1. जी बहुत बढ़िया....

    कुंवर जी,

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  2. 'यादेँ बीते कल की' बहुत अच्छी लगी।
    बधाई हो!

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  3. बड़े करीने से पिरोया है हर शब्द को ! मन को छूती एक बहुत ही सुन्दर रचना ! आपको बहुत बहुत बधाई और आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,

    जवाब देंहटाएं

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