13 जून, 2010

कलम

मैं कलम हूँ ,
गति मेरी है अविराम ,
तुम मुझे न जान पाओगे ,
जहाँ कहीं भी तुम होगे ,
साथ अपने मुझे पाओगे ,
जीवन में जितने व्यस्त हुए ,
तब भी न मुझसे दूर हुए ,
मेरे बिना तुम अधूरे हो ,
स्वप्न कैसे साकार कर पाओगे |


आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. कलम संग में आपकी रहे गति अविराम।
    सपने हों साकार सभी यही सुमन मन काम।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. शरे भावों को बहुत सुन्दर सरल शब्दों मे बान्धा है । आभार्

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  3. Gahanta evam sahajta ka anokha sangam hai apaki rachna me. Saral shabdon me gambhir bhavnaon o sundarata se bandha hai . Badhai.

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  4. bilkul sahi kaha aap ne

    शानदार पोस्ट है...

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