22 जून, 2010

आज के संदर्भ मै

भ्रष्टाचार का दानव पनपा ,
महँगाई सीमा लाँघ गयी
जमाखोरी और रिश्वतखोरी भी ,
सारी हदें पर कर गई ,
कई लोग लिप्त हुए इसमें ,
सिक्ता कण से रमे सब में |
विषमता की विभीषिका ने ,
पग-पग पर कदम बढ़ाये अपने ,
गरीबों की जमीन हथिया कर ,
चालाक किसान धनवान हो गया ,
छोटा किसान बिना ज़मीन के ,
केवल मजदूर बन कर रह गया |
संख्या गरीबों की बढ़ी है ,
आवाज बुद्धिजीवी की ,
दवा दी जाती है ,
स्थिति देश की बिगड़ती जाती है ,
चंद हाथों में धन के सिमटने से ,
धनिक अधिक धनाढ्य हो गया ,
इस मकड़ जाल में फँस कर ,
जीना आम आदमी का कठिन हो रहा |
नेतागिरी एक धंधा बनने से ,
कई गुंडे नेता बन बैठे हैं ,
करते हैं देश हित की बातें ,
पर जेब अपनी भरते हैं ,
जब भी क्रांति आयेगी ,
जागृति समाज में लायेगी ,
सत्य की आवाज न दबाई जाएगी ,
गरीबों और अमीरों के बीच की ,
खाई पटती जायेगी ,
देश में खुशहाली आयेगी |



आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. जब भी क्रांति आएगी ,
    जागृति समाज में लाएगी ,
    सत्य की आवाज न दबाई जाएगी ,
    गरीबों और अमीरों के बीच की ,
    खाई पटती जाएगी ,
    देश में खुशहाली आएगी |

    हमें भी बेसब्री से उस दिन का इंतज़ार है जिस दिन गरीबों की आवाज़ सुनी जायेगी और अमीरों और गरीबों के बीच की खाई पट जायेगी ! अच्छे स्वप्न देखने का अधिकार सबको है !

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  2. उसी दिन के इन्तजार में दशक गुजरे...अच्छी रचना!

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  3. भ्रष्टाचार का दानव पनपा ,
    महंगाई सीमा लांघ गयी
    sahi kaha aapne achhi lagi rachna

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  4. ना जाने और कितना वक्त गुज़रेगा इस इंतज़ार में ....आज के परिवेश को बताती सार्थक रचना

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  5. आशा तो मुझे भी है.....वो सुबह कभी तो आयेगी.....अच्छी प्रस्तुति के लिये बहुत-बहुत बधाई....

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