12 जुलाई, 2010

दिशा हीन

दिशा हीन सा भटक रहा ,
आज यहां तो कल वहां ,
अपनी मंजिल खोज रहा ,
आज यहां तो कल वहां
क्या चाहता है कल क्या होगा ,
इसका कोइ अंदाज नहीं ,
कल भी वह अंजाना था ,
अपने सपनों में खोया रहता था ,
लक्ष क्या है नहीं जानता था ,
बिना लक्ष दिशा तय नहीं होती ,
यह भी सोचता न था ,
पढता था इस लिये ,
कि पापा मम्मी चाहते थे ,
या इसलिए कि,
बिना डिग्री अधूरा था ,
पर डिग्री ले कर भी ,
और बेकार हुआ आज ,
जो छोटा मोटा काम ,
शायद कभी कर भी पाता ,
उसके लिए भी बेकार हुआ ,
ख्वाब बहुत ऊंचे ऊंचे ,
जमीन पर आने नहीं देते ,
जिंदगी के झटकों से ,
दो चार होने नहीं देते ,
हर समय बेकारी सालती है ,
मन चाही नौकरी नहीं मिलती ,
यदि नौकरी नहीं मिली ,
तो आगे हाल क्या होगा ,
यही सवाल उसको ,
अब बैचेन किये रहता है ,
यदि थोड़ी भी हवा मिली ,
एक तिनके की तरह ,
उस ओर बहता जाता है
पैदा होती हजारों कामनाएं ,
कईसंकल्प मन में करता है ,
कोइ विकल्प नजर नहीं आते ,
दिशा हीन भटकता है |
आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. aadarniya maaji
    aapne to jo rachna post ki hai vah vakai me aaj aapni manjil se bhatak rahe logo ke liye ek rasta dikhane ka behatareen prayaas hai.
    bilkul aaj ke samay ke anu kul ek sundar rachna.
    poonam

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  2. मन चाही नौकरी नहीं मिलती ,
    यदि नौकरी नहीं मिली ,
    तो आगे हाल क्या होगा ,
    bura haal hoga..........

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  3. बहुत सुन्दर कविता. कविता क्या, यथार्थ है ये तो, केवल भाव पद्य में व्यक्त किये गये हैं. सुन्दर.

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  4. आज के युवाओं का सही चित्र खींचा है आपने ! उच्च शिक्षा प्राप्त कर छोटा मोटा काम करना शान के खिलाफ हो जाता है और मन के मुताबिक़ नौकरी ना मिले तो लक्ष्यहीन हो भटकना ही होगा ! एक ईमानदार यथार्थवादी रचना ! बधाई !

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  5. yuvaon ki soch ka achha varanan kiya hai. ye apka goodh anuvabh. mata-pita ka dabav rahta hai.

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