13 जुलाई, 2010

जिसे प्यार कहते हैं

मन में छुपा वह कोमल भाव ,
जिसे प्यार कहते हैं ,
इसे व्यक्त करना मुश्किल है ,
केवल अनुभूति ही होती है |
प्यार बलिदान और समर्पण ,
सभी भाव निहित इसमें ,
कैसे इसे परिभाषित करें ,
शब्द भी कम पड़ जाते हैं |
जो भाषा प्रेम की पढ़ता है ,
वही पंडित हो जाता है ,
सकल चराचर में व्याप्त प्यार ,
है कोइ अछूता नहीं इससे |
सारस का जोड़ा सदा ,
साथ साथ रहता है ,
पर एक यदि नहीं रहे ,
साथी जीवन खो देता है |
ममता ,स्नेह,प्रीत, प्रेम ,
जाने कितने रूप इसके ,
सब एकसे नहीं होते ,
सब में अंतर होता है |
है स्नेह प्यार का एक रूप ,
जिसमे स्थाईत्व नहीं रहता ,
यह बाँटा भी जा सकता है ,
जीवन पर्यन्त नहीं रहता |
ईश्वर से लगी सच्ची लगन ,
और तन्मयता उसमें ,
प्रेम ही तो है ,
निष्काम भाव से जन्मा यह ,
संबंध प्रगाढ़ कर जाता है |
जीवन के रंग मंच पर ,
सारी बातें नाटक सी लगती है ,
कुछ भुला दी जाती है ,
कुछ यादों में बस जाती हैं |
मीठी यादों से उपजी प्रीत ,
सच्चा प्यार होती है ,
राधा दिव्या प्रेम की मिसाल ,
मीरा की बात निराली है |
ईश्वर प्रदत्त यह गुण ऐसा ,
जीवन जीना सिखाता है ,
जो भी इस में लीन हुआ ,
प्रभु के करीब आ जाता है |
द्वेष ,जलन और ईर्षा ,
हैं शत्रु इस मार्ग के ,
जो इन सब से बच पाता है ,
निजी स्वार्थ से परे वह ,
प्रेम पंथ पर बढता जाता है |
आशा

4 टिप्‍पणियां:

  1. ईश्वर से लगी सच्ची लगन ,
    और तन्मयता उसमें ,
    प्रेम ही तो है

    Satya vachnnn

    जवाब देंहटाएं
  2. प्यार को बहुत अच्छी तरह से परिभाषित किया है आपने रचना में ! बहुत सुन्दर और सारगर्भित अभिव्यक्ति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  3. निश्छल प्रेम रस में डूबी -
    अनुपम रचना -
    बधाई

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: