14 जुलाई, 2010

है जिंदगी यही

सुन्दर सी छोटी सी चिड़िया
घोंसले में दुबकी हुई चिड़िया
देख रही आते अंधड़ को
हवा के बवंडर को
कहीं घर तो उसका
न गिर जाएगा
आसरा तो न छिन जाएगा |
यही है इकलौती पूंजी उसकी
जिस में सारी दुनिया सिमटी
छोटे छोटे चूजे उसके
भय से कांप कांप जाते
उन्हें साथ साथ चिपका लेती
भय उनका भी कम करती |
पर अपने भय का क्या करे
उसके मन की कौन सुने
सहारे भाग्य के रहती है
जब अंधड से बच जाती है
अपने को सुरक्षित पाती है
खुशी के गीत गाती है
बीते पल भूल जाती है
यूंही जिंदगी गुजर जाती है |
पर कर्मठ कभी भाग्य पर
निर्भर नहीं रहता
होता है चिड़िया से भिन्न
अपना रास्ता स्वयं खोजता
समस्याओं से जूझना सीखता
उनसे बाहर निकलने के लिए
प्रयत्नों में कमी नहीं रखता
समस्याओं से भरी है जिंदगी
यह भी कभी नहीं भूलता |
आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. चिड़िया के माध्यम से बड़ी सार की बातें कह दीं आपने ! वास्तव में जो कर्मठ है वही रास्ते में आई रुकावटों और समस्याओं से जूझ कर उनके समाधान तलाश लेता है ! भाग्य के सहारे रहने वाला हमेशा बाधाओं के सामने हार जाता है ! सार्थक रचना ! बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  2. जीवन का निचोड़ -कहती हैं आपकी रचनाएँ -
    सजीव -सुंदर -सार्थक -भावपूर्ण रचना -
    बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह आशा जी,
    एक सार्थक संदेश देती हुई रचना
    बहुत अच्छा लिखती हैं आप

    आभार

    "ब्रह्माण्ड भैंस सुंदरी प्रतियोगिता"

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: