03 सितंबर, 2010

आभास क्षमता का

है खंजन नयन ,चंचल चपल ,
मद मस्त चाल हिरणी सी ,
कभी लगती ठंडी बयार सी ,
फिर भी है विरोधाभास ,
तू है उदास विरहणी सी ,
वेदना के स्त्रोत क्यूँ,
साथ लिए रहती है ,
है जीवन की भरपूर आस ,
ना हो उदास ,
उससे दूर क्यूँ रहती है ,
तू नहीं जानती ,
है कितनी अमूल्य तू ,
है तुझ में ऐसी तपिश ,
जो चाहे कर सकती है ,
कभी ठंडी हिम पिंड सी ,
दावानल की तरह ,
कभी उग्र भी हो सकती है ,
अपनी क्षमता को पहचान ,
ना रह इससे अनजान ,
दृढता से उठे कदम ,
ऊँचाई तक पहुंचाएंगे ,
तेरी पहचान बनापाएंगे ,
मत भूल अपनी क्षमता को ,
ना ही सीमित कर क्षेत्र को ,
जब लोग तुझे जानेंगे ,
तेरी पहचान पुष्ट होगी ,
दुनिया तब बैरी ना होगी ,
जिस भी क्षेत्र में कदम रखेगी ,
सफलता के उत्तंग शिखर पर ,
तू सहज ही चढ़ पाएगी |
आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. Parnaam asha maa

    भावपूर्ण रचना के लिये बधाई !

    bete ke janamdin par blog par swagat hai...

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  2. बहुत प्यारी रचना -
    अपनी क्षमता से पहचान कराती हुई -
    शुभकामनाएं .

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  3. बहुत सुन्दर रचना है और मन में अपार शक्ति का संचार करने की क्षमता रखती है ! इतनी प्राणवान और प्रेरक रचना के लिए आपका ढेर सारा अभिनन्दन, धन्यवाद एवं आभार !

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