02 नवंबर, 2010

हो स्वागत कैसे लक्ष्मी का

हो स्वागत कैसे लक्ष्मी का ,
अन्धकार ने घेरा है ,
तेल बाती लायें कहाँ से ,
महँगाई ने घेरा है ,
हर ओर उदासी छाई है ,
कमर तोड़ महँगाई है ,
बाजार भरा पड़ा सामान से ,
पर धन परिसीमित करना है ,
चंद लोगों ने ही त्यौहार पर,
कुछ नया खरीदा है ,
बाकी तो रस्म निभा रहे हैं ,
बेमन से पटाखे ला रहे हैं ,
बच्चों का मन रखने के लिए ,
गुजिया पपड़ी बने कैसे ,
मँहगाई की मार पड़ी है ,
खील बताशे तक मँहगे हैं ,
क्रेता का मुँह चिढ़ा रहे हैं ,
शक्कर की मिठास भी,
कम से कमतर होने लगी है ,
हर चीज फीकी लगती है ,
जब भाव उसका पूछते हैं ,
मन को कैसे समझायें ,
देना लेना सब करना है ,
कहाँ-कहाँ हाथ रोकें ,
हर बात है समझ से परे ,
पसरे पैर मँहगाई के ,
गहरा घना अंधेरा है ,
फिर भी सब कुछ करना है ,
क्योंकि यहीं रहना है ,
हर त्यौहार की तरह ,
दीपावली भी ,
मन ही जायेगी ,
पर आने वाले दो माह का ,
बजट बिगाड़ कर जायेगी |


आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई बजट तो बिगड़ ही गया है.
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  2. दीपावली भी ,
    मन ही जाएगी ,
    पर आने वाले दो माह का ,
    बजट बिगाड़ कर जाएगी |
    आपने तो मन में .... भय का बम रख दिया... सही बिगड़ने वाली है ... आज से ही ....!

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  3. बहुत ही यथार्थवादी रचना ! घर घर की यही कहानी है ! लेकिन यह भी सच है कि दीपावाली भी मनाई तो जायेगी ही !
    आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  4. महंगाई की मार
    झेल रहे हैं आज
    सारे त्योहार .

    सटीक रचना ...
    दीपावली की शुभकामनाएं

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  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति। दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई! राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
    राजभाषा हिन्दी पर – कविता में बिम्ब!

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  6. सटीक रचना ...
    आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं ...

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