06 जनवरी, 2011

दस्तूर दुनिया का

पहले जब देखा उन्हें ,
वे मेरे निकट आने लगे ,
मन में भी समाने लगे ,
जब तब सपनों में आकर ,
उन्हें भी रंगीन करने लगे ,
आने से उनके ,
जो फैलती थी सुरभि ,
स्वप्न में ही सही ,
सारी बगिया महक उठती थी ,
बहुत बार विचार किया ,
फिर मिलने की आशा जागी ,
पहले तो वे सकुचाए ,
फिर घर का पता बताने लगे ,
उन लोगों तक जब पहुँचा ,
कुछ कहना चाहा हाथ माँगा ,
एक ही उत्तर मिला ,
घर वालों से पहले पूछो ,
उनकी स्वीकृति तो लो ,
बात उठाई जब घर में ,
सुनने को मिला आदेश भी ,
यह खेल नहीं गुड्डे गुड़िया का ,
सारी बातें भूल जाओ ,
पहले अपना भविष्य बनाओ ,
फिर कोई विचार करना ,
गहन हताशा हाथ आई ,
मन बहुत उदास हुआ ,
अचानक जाने क्या हुआ ,
जल्दी ही मन के विरुद्ध ,
किया गया एक रिश्ता ,
बे मन से ही सही ,
उसे स्वीकार करना पड़ा ,
सोचने को है बहुत कुछ ,
ओर सोचा भी कम नहीं ,
मन कसैला होने लगा ,
पर एक बात ध्यान आती है ,
शायद होता यही दस्तूर दुनिया का ,
यहाँ हर रिश्ता बे मेल होता है ,
पर समाज को स्वीकार होता है |


आशा

9 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    सत्य की की राह दिखने वाली सुन्दर रचना!

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  2. बिल्कुल सही कह रही हैं आप ! समाज में व्याप्त निर्मम यथार्थ का दर्पण है आपकी रचना ! एक अच्छी और सच्ची पोस्ट ! बधाई !

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  3. सोचने को है बहुत कुछ ,
    ओर सोचा भी कम नहीं ,
    मन कसैला होने लगा ,
    पर एक बात ध्यान आती है ,
    शायद होता यही,
    दस्तूर दुनिया का ,
    यहां हर रिश्ता बे मेल होता है ,
    पर समाज को स्वीकार होता है |
    थोडा समय लगता है किसी भी रिश्ते को स्वीकारने में पर अंत में स्वीकारना ही पड़ता है
    ...............यही तो दस्तूर दुनिया का

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  4. यहां हर रिश्ता बे मेल होता है ,
    पर समाज को स्वीकार होता है |


    कटु सत्य का बोध कराती हुई सुंदर रचना -

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  5. यहां हर रिश्ता बे मेल होता है ,
    पर समाज को स्वीकार होता है |

    एक कडवे सच को उकेर दिया……………बहुत ही बढिया।

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  6. पर एक बात ध्यान आती है ,
    शायद होता यही,
    दस्तूर दुनिया का ,
    यहां हर रिश्ता बे मेल होता है ,
    पर समाज को स्वीकार होता है |
    बिलकुल सच कहा आशा जी । लेकिन जीना पडता है बेमेल रिश्तों के साथ भी। बहुत अच्छी लगी रचना। बधाई।

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  7. समाज में व्याप्त यथार्थ का दर्पण है आपकी रचना !

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  8. पर एक बात ध्यान आती है ,
    शायद होता यही दस्तूर दुनिया का ,
    यहां हर रिश्ता बे मेल होता है ,
    पर समाज को स्वीकार होता है |

    bilkul sach di.........:)
    bahut khubi se aap apnee baat kah jati ho, hai na...:)

    Di mere naye post ko dekhna....mere blog pe!!

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