19 जनवरी, 2011

और सपना साकार हुआ

जीवन की डगर पर ,
साथ उसे जब चलते देखा
कई फूल खिले मन के अंदर ,
उन से महका तन मन चंचल
उसकी वह अनुभूति हुई जब
खुलने लगे मन के बंधन ,
स्पष्ट बात करना उसका
मधुर मुस्कान सदा आनन पर
वह और उसका आकर्षण
कर देता बेचैन मुझे ,
अपनत्व पाने के लिये
उसके निकट आने के लिये
वह रूप और अदाएं
मन करता खींच लाऊँ उसे ,
अपने मन की बगिया में |
साथ बैठूँ बातें करूँ
कुछ अपनी कहूँ
कुछ उसकी सुनूँ
जैसे ही हाथ बढ़ाना चाहा
कि सपना टूट गया |
स्वप्न में जिसकी इच्छा थी
वह सामने खड़ी थी
अपने मुखड़े पर आई
उलझी लट सुलझा रही थी |
वही स्मित मुस्कान
लिये चहरे पर
पर यह स्वप्न नहीं था
सच्चाई थी
वही मेरे सामने खड़ी थी |

आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    बेहद गहन और सूक्ष्म अभिव्यक्ति…

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  2. बहुत सुन्दर और गहन अभिब्यक्ति | धन्यवाद|

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  3. खूबसूरत प्रस्तुति ! एक सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनाएं !

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