01 फ़रवरी, 2011

है कौन दोषी

पैर पसारे भ्रष्टाचार ने
अनाचार ने,
नक्सलवादी उग्रवादी
अक्सर दीखते यहाँ वहाँ |
कोई नहीं बच पाया
मँहगाई की मार से ,
इन सब के कहर से
भटका जाने कहाँ-कहाँ |
जन सैलाब जब उमड़ा
इनके विरोध में
पर प्रयत्न सब रहे नाकाम
होता नहीं आसान
इन सब से उबरना |
है यह एक ऐसा दलदल
जो भी फँस जाता
निकल नहीं पाता
दम घुट कर रह जाता |
यह दोष है लोक तंत्र का
या प्रदेश की सरकार का
या शायद आम आदमी का
सच्चाई है क्या ?
जानना हो कैसे सम्भव
हैं सभी बराबर के दोषी
कोई नहीं अछूता इन से
जब खुद के सिर पर पड़ती है
पल्ला झाड़ लेते हैं |
असफल गठबंधन सरकारें
नेता ही नेता के दुश्मन
ढोल की पोल खोल देते
जब भी अवसर हाथ आता |
आम आदमी
मूक दृष्टा की तरह
ठगा सा देखता रहता
देता मूक सहमति
हर बात में |
क्या दोषी वह नहीं ?
वह विरोध नहीं कर पाता
मुँह मोड़ लेता सच्चाई से
इसी लिए तो पिस रहा है
खुद को धँसता पा रहा है
आज इस दल दल में |

आशा


6 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा आपने ...मूक दृष्ट की तरह मूक सहमति देने वाला भी कम जिम्मेदार नहीं है...
    व्यवस्था और भ्रष्टाचार का सच बयान कर दिया आपने !

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  2. देश में व्याप्त अराजकता और अनाचार का सजीव चित्रण किया है आपने ! जनता भी उतनी ही दोषी है जिसने देश के लिये ऐसे भ्रष्ट और अकर्मण्य नेता चुने हैं ! लेकिन प्रक्रिया ही दोषपूर्ण है तो जनता क्या करे ! यहाँ तो सभी रंगे सियार हैं ! जो नहीं हैं वो अपनी ईमानदारी की सज़ा भुगतते हैं ! बहुत ही यथार्थपरक और चुटीली रचना ! बधाई एवं आभार !

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  3. प्रासंगिक और हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ हैं आशाजी.....

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  4. किसी और को दोषी क्यों ठहराएं जब हम सब ही जातिवाद.क्षेत्रवाद,भाषावाद और न जाने कौन कौन से वादों से ग्रस्त होकर लुटेरों को चुनकर सत्ता के गलियारों तक भेजते हैं.

    सादर

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  5. सार्थक .. बहुत आक्रोश से लिखा है आपने इस रचना को .. सच लिखा है आम आदमी बस मूक है आज ...

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  6. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    ...सही कहा आपने किसी और को दोषी क्यों ठहराएं जब हम सब ही जातिवाद.क्षेत्रवाद से ग्रस्त होकर लुटेरों को चुनकर सत्ता के गलियारों तक भेजते हैं.

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