14 मई, 2011

साकार होती कल्पना



मंथर गति से चलती

गज गामिनी सी

वह लगती ठंडी बयार सी

जो सिहरन पैदा कर जाती |

कभी अहसास दिलाती

आँखों में आये खुमार का

मन चंचल कर जाती

कभी झंझावात सी |

ना है स्वयम् स्थिर मना

ना चाहती कोई शांत रहे

पर मैं तो कायल हूँ

उसके आकर्षक व्यक्तित्व का |

है वह बिंदास और मुखर

क्या चाहती है मैं नहीं जानता

पर चंचल हिरनी सी

चितवन यही

जहां भी ठहर जाती है

एक भूकंप सा आ जाता है

जाने कितने दिलों में

बजती शहनाई का

दृश्य साकार कर जाता है |

उसका यही रूप

सब को छू जाता है

हर बार महकते गुलाब की

झलक दिखा जाता है |

मन के किसी कौने में

उसका विस्तार नजर आता है

है इतनी प्यारी कि

उसे भुला नहीं पाता |

यही सोच था

बरसों से मन में

जो सपनों में साकार

होता नजर आता |

आशा

9 टिप्‍पणियां:

  1. kya khoobsurti se ek premi ke manobhaav ka chitran kiya hai Aashaji.bahut suder prastuti.

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  2. बहुत सुन्दर शब्दों में परिभाषित प्रेम| धन्यवाद|

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  3. एक खूबसूरत प्रेममयी रचना ! बहुत सुन्दर ! बधाई स्वीकार करें !

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  4. प्रेम और आशा सुंदर समन्वय इस बेहतरीन कविता के माध्यम से.

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  5. आदरणीया आशा जी बहुत ही प्यारे बोल शब्द बंधन -प्रेम की अभिव्यक्ति प्रेयसी काश ऐसे ही मिले -
    मंथर गति से चलती

    गज गामिनी सी

    वह लगती ठंडी बयार सी
    शुक्ल भ्रमर ५

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  6. वाह .... बहुत ही खूबसूरत शब्‍द रचना ।

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  7. Aasha ji namaskar...premabhyakti ki vaani aapse jyada mukhar kisi ki nahi...
    उसका यही रूप

    सब को छू जाता है

    हर बार महकते गुलाब की

    झलक दिखा जाता है

    Bahut khoob likha hai aapne...vandniya hain aap.

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