28 मई, 2011

अन्तर मन


तेरे मन के अन्दर
है ऐसा आखिर क्या |
जो कोइ नहीं देखता
तुझे नहीं जानता |
हल्की सी छाया दिखती
तेरा वजूद जताती |
तूने भी न पहचाना
पर मैं उसे देख पाया |
देखा तो तूने भी उसे
पर अनदेखा किया |
मुँह और फेर लिया
यह क्या उचित था |
यदि उलझन नहीं
है क्या यह बेचारगी |
तू कितना सोचती है
अंतस में खोजना |
तभी तो जान पाएगी
कुछ कहना सुनाना |
फिर सोचना गुनना
सक्षम तभी होगी |
अपने को समझेगी
ख़ुद को पा जाएगी |
चमकेगी चहकेगी
रूठी ना रहेगी |

आशा


10 टिप्‍पणियां:

  1. तू कितना सोचती है
    अंतस में खोजना |
    तभी तो जान पाएगी
    कुछ कहना सुनाना |
    फिर सोचना गुनना
    सक्षम तभी होगी |
    अपने को समझेगी
    ख़ुद को पा जाएगी |
    चमकेगी चहकेगी
    रूठी ना रहेगी

    गहन विचार से अताप्रोत है आपके शब्द बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. सकारात्मक ऊर्जा और सार्थक संदेश से भरी एक प्रेरक रचना ! बहुत सुन्दर ! बधाई एवं शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  3. तू कितना सोचती है
    अंतस में खोजना |
    तभी तो जान पाएगी
    कुछ कहना सुनाना |
    फिर सोचना गुनना
    सक्षम तभी होगी |... aapke naam ke anurup rachna

    जवाब देंहटाएं
  4. अन्तस में खोजने पर ही जान पायेगा और अन्तस में खोज लेने के पश्चात ही व्यक्ति अपने को समझने में सक्षम हो जाता है फिर जीवन अपने आप चमत्कृत होने लगता है फिर आपदा विपत्ति को सहने की क्षमता आजाती है लेकिन अन्तस में खोजने से आदमी डरता है। ""जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ ,,हौ बौरी डूबन डरी रही किनारे बैठ ""

    जवाब देंहटाएं
  5. very nice !!
    it was a pleasure to read this.
    Introspection is must for a healthy life.

    जवाब देंहटाएं
  6. सार्थक संदेश से भरी एक प्रेरक रचना| बधाई|

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: