01 जून, 2011

चाँद भी लजाया है

चितचोर बना मोर
पंख फैला थिरकता |
रंगों की छटा देखता
मन में समाया है |
ये मधुर स्वर सुन
कानों में गूंजती धुन |
जब स्वर पास आया
और पास लाया है |

है अद्भुद रूप तेरा
आकर्षित करता है |
अपने जादू से तूने
सब को लुभाया है |
काकुल चहरे पर
आ छु गयी इस भांति
काली घटा देख कर
चंद्र शरमाया है |

मधुर मुस्कान भरी
ऐसी प्यारी छवि तेरी |
देखी सुंदरता तेरी
चाँद भी लजाया है |
आशा




9 टिप्‍पणियां:

  1. आशा जी, बहुत प्यारी कविता लिखी है,

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  2. श्रृंगार रस से भरपूर ...मनमोहक कविता ...!!
    बहुत सुंदर रचना ..!!

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  3. सुन्दर रूप वर्णन ! अनुराग रस से परिपूर्ण एक बहुत ही कोमल रचना ! बहुत खूब !

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  4. मधुर मुस्कान भरी
    ऐसी प्यारी छवि तेरी |
    देख सुंदरता तेरी
    चाँद भी लजाया है |
    mann ko lubhati rachna

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  5. bahut pyari kavita likhi hai.............. jai hind jai bharat

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