31 अगस्त, 2011

माँ की ममता


माँ ने ममता से
पलकों पर बिठाया तुम को
हो तुम क्या
अहसास दिलाया तुम को |
हर पल तुम्हे याद किया
पलकों को छूते ही
अहसास तुम्हारा पा
बाहों में झुलाया तुमको |
जब बाहर पैर रखा
अपना अस्तित्व खोजा
तुमने पलट कर न देखा
कुछ जानना न चाहा |
यह बेरुखी ऐसा व्यवहार
ह्रदय में गहरे जख्म कर गया
तुम नहीं जानतीं
तुमने कितना रुलाया उसको |
उसूलों पर खरी नहीं उतरीं
ना ही कभी सोचा
होती है ममता क्या
और उसकी अपेक्षाएं क्या ?
उसके मन की पीड़ा को
अभी न जान पाओगी ,
समझोगी तब ,
जब स्वयं माँ बनोगी |
आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. माँ की ममता को शब्द देती अच्छी प्रस्तुति

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  2. सचमुच माँ की ममता क्या होती है इसका मोल स्वयं माँ बन जाने के बाद ही पता चलता है ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई !

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  3. सुन्दर प्रस्तुति...दिल को छू गई...ईद मुबारक़

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  4. वाह अद्भुत है माँ की ये ममता

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  5. अत्यंत सार्थक अभिव्यक्ति...
    सादर बधाई...

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  6. सच में अद्भुत होती है माँ की ममता........

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  7. माँ की ममता को शत शत नमन....बहुत सुन्दर रचना...सादर !!!

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