01 सितंबर, 2011

कुछ कदम


कुछ कदम वह चले
और कुछ तुम भी चलो
है इतनी लम्बी डगर
फासले कुछ तो कम होंगे |
तुम्हारी ये नादानियां
जी का जंजाल हों गईं
समझौता विचारों में
किस तरह हों पाएगा |
यदि चल पाए दौनों
चार कदम भी साथ साथ
जिन्दगी का बुरा हाल
ऐसा न हों पाएगा |
जब भी वह झुके
और तुम ना झुक पाओ
बनती बात बिगड़ जाएगी
फिर कुछ भी न हों पाएगा |
आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. जब भी वह झुके
    और तुम ना झुक पाओ
    बनती बात बिगड़ जाएगी
    फिर कुछ भी न हों पाएगा |

    ....बहुत सार्थक सन्देश देती सुन्दर प्रस्तुति..

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  2. कुछ कदम वह चले
    और कुछ तुम भी चलो
    है इतनी लम्बी डगर
    फासले कुछ तो कम होंगे | बहुत ही सुन्दर एहसास....

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  3. जीवन के यथार्थ की ओर संकेत करती सार्थक प्रस्तुति ! बधाई !

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  4. जब भी वह झुके
    और तुम ना झुक पाओ
    बनती बात बिगड़ जाएगी
    फिर कुछ भी न हों पाएगा |

    सच को प्रतिबिम्बित करती बेहतरीन रचना...


    गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  5. बहुत सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना...

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