03 नवंबर, 2011

कसौटी






जिस साधना की नव विधा के, स्वर सिखाये आपने।
वो गीत गाये गुनगुनाये, जो सुनाये आपने।।
वो थे मदिर इतने कि कानों - में, मधुरता चढ़ गयी।
है गीत की यह रीत, गाने - की विकलता, बढ़ गयी।१।

वह गीत गाती, गुनगुनाती, वादियों में घूमती।
मौसम मधुर का पान करती, मस्तियों में झूमती।।
ढेरों किये तब जतन उसने, आपसे दूरी रही।
मिलना न था सो मिल न पाई, क्वचिद मज़बूरी रही।२।

बीते दिनों की याद उसको, जब सताने लग गयी।
तब याद जो मुखड़े रहे, वह, गुनगुनाने लग गयी।।
वह आत्म विस्मृत भटकनों में, भटकती जीने लगी।
फिर भूल कर सुध-बुध, मगन-मन, भक्ति-रस पीने लगी।३।

तब तोड़ कर बंधन जगत से, प्रभु भजन में खो गयी।
अनुरोध मन का मान कर, वह, कृष्ण प्यारी हो गयी।।
हर श्वास में प्रभु थे बसे, वश, लेश, तन-मन पर न था।
हर पल कसौटी तुल्य था, पर, पर्व से कमतर न था।४।
आशा

3 टिप्‍पणियां:

  1. 'कृष्‍ण प्रेम में मीरा दीवानी हो गई.....'
    सुंदर रचना।
    गहरे अहसास।

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  2. जिस साधना की नव विधा के, स्वर सिखाये आपने।
    वो गीत गाये गुनगुनाये, जो सुनाये आपने।।
    वो थे मदिर इतने कि कानों - में, मधुरता चढ़ गयी।
    है गीत की यह रीत, गाने - की विकलता, बढ़ गयी।१। bhaut hi khubsurat abhivaykti....

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