10 जुलाई, 2012

कैसी संस्कृति


आलीशान अट्टालिकाएं
गगनचुम्बी इमारतें बहुमंजिली
विभिन्न वर्ग यहाँ पलते
साथ साथ रहते
भूल् गए  कहाँ से आए ?
हैं कौन ?क्या थे?
और क्या संसकृति उनकी ?
बस एक ही संसकृति महानगर की
दिखाई देती यहाँ वहाँ |
हैं व्यस्त इतने कि
घर पर ध्यान नहीं देते
छोटे मोटे काम भी
स्वयंनहीं करते  |
इन्हीं के बल पल रही
पास ही झोंपड़पट्टी
नारकीय जीवन जीते
 यहाँ के रहवासी |




कचरे के अम्बार में से
कुछ खोजते एकत्र करते
सहेजत बच्चे
पौलीथीन के थैले में |
कर्मठता से खुश हो
शाम पड़े जाते
पाते कुछ पैसे कवाड़ी से
उस कवाड़ के बदले में |
महिलाएं प्रातः रुख करतीं
नगर की ओर
और हो जातीं हिस्सा
उसी संसकृति का |
पैसा हर काम का मिलता
पर जीवन सत्व निचोड़ लेता
जब शाम पड़े बापिस आतीं
फटी टूटी कथरी ही
सबसे बड़ी नियामत लगती
थकी हारी वे सो जातीं
गहरी नींद के आगोश में
तभी वहाँ एक वर्ग जागता रहता
कभी नशे में धुत्त रहता
किसी गुनाह को अंजाम देता
उसे ही अपना कर्म समझता
आय का स्त्रोत समझता
यहाँ पनपते कई गुनाह
साए में अन्धकार के
आकंठ डूबे वे नहीं जानते
क्या होगा अंजाम ?
बस आज में जीते हैं
कल की चिंता नहीं  पालते |


आशा

14 टिप्‍पणियां:

  1. अब विकास की दौड़ में सोचने का समय किसको है ? सुन्दर रचना..

    जवाब देंहटाएं
  2. शहरी जीवन का और जीवन शैलियों में भारी अंतर का बखूबी चित्रण किया है..
    बहुत सुन्दर

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  3. kachara hoti jindagi ko khoob dikhaya hai.
    kya kare yahi to shahar hai

    जवाब देंहटाएं
  4. आकंठ डूबे वे नहीं जानते
    क्या होगा अंजाम ?
    बस आज में जीते हैं
    कल की चिंता नहीं पालते |...sahri sanskriti aaur uske saath panpti ek aaur nayee sanskriti..parivesh wahi par haalat wakai kaise kaise jeene ko majboor kar deta hai insaan ko..behtarin rachna..sadar badhayee aaur sadar amatran ke sath

    जवाब देंहटाएं
  5. दोनों वर्ग का अपना जीवन एक की थक के सोना मजबूरी है तो दूसरे का विलास में जागना... व्यस्तता दोनों ओर है... शहरी जीवन का सूक्ष्म विवेचन किया है... सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. शहरों की संस्कृति .... पर वहाँ बची ही कहाँ है ?

    जवाब देंहटाएं
  7. पैसा हर काम का मिलता
    पर जीवन सत्व निचोड़ लेता
    सत्य कहती ..सुंदर रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  8. एक कटु यथार्थ को चित्रित करती गंभीर रचना ! इनके जीवन का यही सत्य है और जैसे हालात हैं इसमें बदलाव की कोई संभावना भी नज़र नहीं आती ! इस सुन्दर चिंतन के लिए बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  9. विकास की इस अंधी दौड़ ने इंसान को कहीं का नछॊड़ा..कटु यथार्थ का सुन्दर चित्रण..आभार आशाजी..

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत खूब, वाह !
    पैसा हर काम का मिलता
    पर जीवन सत्व निचोड़ लेता
    सुन्दर पंक्तियाँ.

    जवाब देंहटाएं
  11. शहरी जीवन का सच बयान करती रचना

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: