03 फ़रवरी, 2012

पहाड़ उसे बुला रहे

अश्रुपूरित नयनों से
वह देखती अनवरत
दूर उस पहाड़ी को
जो ख्वाव गाह रही उसकी
आज है वीरान
कोहरे की चादर में लिपटी
किसी उदास विरहनी सी
वहाँ खेलता बचपन
स्वप्नों में डूबा यौवन
सजता रूप
किसी के इन्तजार में
है अजीब सी रिक्तता
वहाँ के कण कण में
गहरी उदासी छाई है
उन लोगों में
भय दहशतगर्दों का
विचलित कर जाता
वे चौंक चौक जाते
आताताई हमलों से
कई बार धोखा खाया
पर प्रेम बांटना ना भूले
जो भी द्वारे आए
उसे ही प्रभु जान लेते
पहाड़ उसे बुला रहे
याद वहां की आते ही
वह खिचती जा रही
बंधी प्रीत की डोर में |
आशा


























31 जनवरी, 2012

भटकाव

जपते माला गुरु बनाते
नीति धर्म की बातें करते
पर आत्मसात न कर पाते
सब से वंचित रह जाते |
संचित पूंजी भी चुक जाती
व्यर्थ के आडम्बरों में
बातें यूँही रह जातीं
पुस्तकों के पन्नों में |
है ज्ञान अधूरा ,ध्यान अधूरा
जीवन संग्राम अधूरा
फिर भी सचेत न हो पाते
इधर उधर भटकते रहते
कस्तूरी मृग से वन में
अस्थिर मन की चंचलता
चोला आधुनिकता का
अवधान केंद्रित नहीं रहता
रह जाते दूर सभी से
खाली हाथ विदा लेते
इस नश्वर संसार से |
आशा