26 मई, 2012

जीवन एक लकीर सा


जीवन ने बहुत कुछ सिखाया
पर आत्मसात करने में
 बहुत देर हो गयी
हुए अनुभव कई
कुछ सुखद तो कुछ दुखद
पर समझने में
 बहुत देर हो गयी
साथ निभाया किसी ने
कोई  मझधार में ही छोड़ चला
सच्चा हमदम न मिला
लगा जीवन एक लकीर सा
जिस पर लोग चलते जाते
लीक से हटाना नहीं चाहते
रास्ता कभी सीधा तो कभी
टेढ़ी मेढ़ी  पगडंडी सा
 सांस खुली हवा में लेते
कभी घुटन तंग गलियों की सहते
दृष्टिकोंण फिर भी सबका
एकसा नहीं होता
दृश्य वही होता
पर प्रतिक्रियाएँ भिन्न सब की
लेते दृश्य उसी रूप में
जो मन स्वीकार कर पाता
लकीर जिंदगी की
कहाँ से हुई प्रारम्भ
और कहां  तक जाएगी
जान नहीं पाया
है छोर कहाँ उसका
समझ नहीं पाया |

आशा

22 मई, 2012

एक अहसास


बैठ पार्श्व में अपनत्व जताया
केशपाश में  ऐसा बंधा
जाने की राह ना खोज पाया
कुछ अलग सा अहसास हुआ
परी लोक में विचरण करती
उनकी  रानी सी लगी
उसी पल में जीने लगी
पलकें जब भी बंद हुईं
वही दृश्य साकार हुआ
पर ना जाने एक दिन
कहीं गुम हो गया न लौटा
ना ही  कोई समाचार आया
एकाकी जीवन बोझील  लगा
हर कोशिश बेकार गयी
है जाने कैसी माया
उस अद्भुद अहसास से
दूर रह नहीं पाती
मोह छूटता नहीं
आस मिटती नहीं
इधर उधर चारों तरफ
वही उसे नजर आता
जैसे ही दूरी हटना चाहती 
अंतर्ध्यान हो जाता
सालने लगे अधूरापन व रिक्तता
हर बार यही विचार आता
क्या  सत्य हो पाएगा
 वह दृश्य  कभी |