27 नवंबर, 2013

तस्वीर स्वप्नों की



स्वप्नों की तस्वीर कैसे उतारूं
हैं इतने चंचल
 स्थिर रहते ही नहीं
ना ही आसान
कुछ पलों के लिए
उन्हें रोक पाना
 कोइ नया सुन्दर सा
 पोज दिलवाना
वे बारम्बार पहलू बदलते
कभी पूरी की पूरी
स्थिति ही बदल देते
कोइ वर्जना उन्हें
प्रभावित नहीं कर पाती
वे हैं घुमंतू
बस आते जाते रहते हैं
महफिल में बातें स्वप्नों की 
करना तो अच्छा लगता है
पर बिना प्रमाण वे
सब सतही लगते हैं
चंचल मन के साथ वे
रह नहीं पाते
यहाँ वहां भटकते हैं
कभी रंगीन कभी बेरंग लगते हैं |


9 टिप्‍पणियां:

  1. जवां दिल की प्यार में दीखते रंग-बेरंग की बढ़िया प्रस्तुति ...

    जवाब देंहटाएं
  2. कोइ वर्जना उन्हें

    प्रभावित नहीं कर पाती
    वे हैं घुमंतू
    बस आते जाते रहते हैं.... वाह ! बहुत खूबसूरत।

    जवाब देंहटाएं

  3. कल 28/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. मनमौजी सपनों की चंचल फितरत को बड़ी कुशलता से शब्दों में बाँधा है ! बहुत सुंदर रचना !

    जवाब देंहटाएं
  5. स्वप्नों के अनेक रूपों को कहाँ समझ पाते हैं..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: