01 अक्तूबर, 2013

छेड़छाड़ शब्दों से



की शब्दों से छेड़छाड़
अर्थ का अनर्थ हुआ
सार्थक सोच न उभरा
सभी कुछ बदल गया |
क्या सोचा क्या हो गया
प्यार ने भी मुंह मोड़ा
गुत्थी सुलझ न पाई
अधिक ही उलझ गयी |
हेराफेरी नटखट शब्दों की
बनती बात बिगाड़ गयी
अलगाव बढ़ता गया
उलझनें बढ़ा गयी |
यह न सोचा था उसने
इस हद तक बात बढ़ेगी
जिसका प्रभाव भूकंप सा
इतना तीव्र होगा
वह एकाकी उदास
खँडहर सा रह जाएगा |


है मनोकामना



है मनोकामना
हर उस पल को जीने की
जब होते थे साथ
कोई  तीसरा नहीं
एक अजीब सा अहसास
अब मेरा पीछा करता
ले आता समक्ष तेरे
और हो जाती
मग्न तुझमें |
मुस्कान तेरी 
 बनती बैसाखी
मेरे अंतर मन की
मैं खो जाती तुझ में
और तेरी यादों में
बीते पलों के वादों में|
भर जाती स्फूर्ति से
होती व्यस्त वर्तमान में
ओढे गए कर्तव्यों में |
आशा

29 सितंबर, 2013

टीस



शीशा टूटा
किरच किरच बिखरा
हादसा ऐसा हुआ
तन मन घायल कर गया
तन के घाव भरने लगे
समय के साथ सुधरने लगे
मन के घावों का क्या करे
जिनका कोई इलाज नहीं
यूं तो कहा जाता है
समय के साथ हर जख्म
स्वयं भरता जाता है
खून का रिसाव थम जाता है
पर आज जब जीवन की
 शाम उतर आई है
सब यथावत चल रहा है
पर उन जख्मों में
कोई  परिवर्तन नहीं
 रह रह कर टीस उभरती है
बेचैनी बढ़ती जाती है
उदासी घिरती जाती है |