14 मार्च, 2014

फागुनी तरंग (जापानी ताका )



ताका :-
(1)
बाट जोहती
टेसू के रंग बना
रंगती उसे
गुलाल लिए साथ
कि फागुन आया रे |
(2)
भंग तरंग
मिलन की उमंग
मिला फगुआ
मुंह सुर्ख हो रहा
फागुन मन भाया |

(3)

दिल ने कहा
गुनगुनाओ गाओ
बोल जिसके
मनोभाव छू जाते
फागुन में पलाश
खिल मन रिझाते |
 

(4)
फूलों की होली
मथुरा नगरिया
आ चलें वहां
है लठ्ठ मार होली
आज बरसाने में |

(5)

मटकी टूटी
स्वाद है भरपूर
इस चोरी में
खुद खाया खिलाया
मित्र भाव निभाया |
(6)
मुकर गया
माँ ने  पूंछ लिया
माखन खाया
मैंने नहीं उतारी
फिर भी टूट गयी |

(६)

होली की मस्ती
भाँग मिली ठंडाई
साथ मिठाई
गुजिया भी  साथ है
वाह क्या बात है |

(7)

गुलाल लगा
जोरा जोरी राधा से
फाग खेलता
नटखट कन्हिया
बांसुरी का बजैया
आशा

12 मार्च, 2014

फागुन आगया




हाइकू :
-(१)
 खेलती फाग
रंग रसिया साथ
भला लगता |
(२)
भीगी चूनर
पूरी तरबतर
लिपटी जाए |
(३)
रंग गुलाल
मलता मुंह पर
मन बसिया |

(४)

रंग अवीर 
लिए प्यार की साध  
सजनी सजी |
(५)

कन्हा के संग
गोपियाँ खेलें होली
आज होली है |

आशा

10 मार्च, 2014

सैलाव विचारों का


भयावह काली रात में
विचारों का सैलाव है
एक अजनवी साया
चारों ओर से घेरे है |

अनसुनी  आवाज
बहुत दूर से आती है
एक कहानी लुका छिपी करती 
फिर लुप्त हो जाती है |

पर जिन्दगी खामोश है
ना कोइ आस ना उमंग
न जाने क्या सोच है 
मन में बहुत आक्रोश है |
यह शाम यहीं तो
 नहीं थम जाएगी   
काली रात के बाद
कभी तो सुबह आएगी |
दूर सड़क पर 
है कुछ गहमागहमी 
पर रात के अँधेरे में
 यहाँ भी सन्नाटा होगा|
|
क्या यही भयावह स्वप्न
मुझ से दूर हो पाएगा
इस तन्हाई   में
सजीव रंग भर पाएगा |

09 मार्च, 2014

होली



वही अवीर वही गुलाल
हंसी खुशी और खुमार
बस चेहरे बदल गए हैं
होली के अर्थ बदल गए हैं |
होली तो होली है
रंग में सभी लाल
पर कुछ फर्क हुआ है
रिश्ते बदल गए हैं |
हर वर्ष बड़े उत्साह से
दहन होलिका का करते
खेली जाती होली
ओ मेरे हमजोली |
गले मिलते फाग गाते
चंग की थाप पर
ठुमके लगाते मीठा खाते 
बैर भाव  भूल जाते |
ना बड़ा ना छोटा कोई
समभाव मन में रहता
तन मन रंगता जाता
मन का  कलुष  फिर भी 
दूर न हो पाता |
आशा