27 जून, 2014

मंजूषा यादों की








यादों की मंजूषा
है सुरक्षित ऊंचाई पर
सोचती हूँ
कब वहाँ पहुंचूं|
कद मेरा छोटा सा
मंद दृष्टि क्षीण काया 
ज़रा  ने घेरा 
फिर भी होता नहीं सबेरा |
यादों पर काली छाया
वहाँ जाने नहीं देती
पंखी  सा मन छटपटाता
वहीं पहुँचना चाहता|
व्यस्तता ओढ़े हुए हूँ
फिर भी मन बहकता
उसी ऊंचाई पर पहुँच
यादों में खोना चाहता|
बीते दिन लौट नहीं पाते
यादों में बसे रहते
जब भी एकांत मिलता
 मंजूषा का पट खुलता|
अतीत मेरे समक्ष होता
उन लम्हों की मिठास
मैं भूल नहीं पाती
उनमें ही समाती जाती |
आशा 

26 जून, 2014

आसार सूखे का





किया कैसा क्रूर मजाक
प्रकृति ने मानव के संग
दिखाई झलक बादलों की
फिर उन्हें बापिस बुला लिया
एक बूँद भी जल की न टपकी
आशा निराशा में बदली
ऐसा आखिर क्यूं किया
किस बात की सजा है यह
यह तक स्पष्ट नहीं किया
गर्मी की अति हो गई
त्राहि त्राहि मच रही
पूजा पाठ दुआ प्रार्थना
किसी का असर नहीं  हुआ
यह कैसा मजाक किया |




24 जून, 2014

अविरल धारा



अविरल धारा नदिया की
दे रही सन्देश यही
जीवन उस जैसा हो
ना बाधाओं ने घेरा हो |
झर झर झरता झरना
पर्वत से नीचे आता
तनिक भी भयभीत नहीं
जिंदगी नहीं उस जैसी
पर सभी लगते सपने से
जीवन ऐसा गतिमान नहीं
बाधित होता रहता
उतार चढ़ाव से भरा रहता  |
चंद लोग ही होते ऐसे
जो हर बाधा पार करते
कोई पत्थर ऐसा नहीं
जिसे नहीं हटा पाते |
व्यवधान अंतराल बाधाएं
जीवन मार्ग कठिन करते
जब पार उन्हें कर लेते
सम्रद्ध होने का श्रेय लेते |
भ्रम से भ्रमित नहीं होते
समय का दामन थामे 
अग्रसर होते जाते
सफलता की कुंजी पाते  |
आशा

हईगा वर्षा पर





23 जून, 2014

चित्र क्षणिका

बर्फ कीचादर बिछी है 
जलधारा ने दो टूक किया 
पर दिल नहीं बट पाए 
जितने भी यत्न किये |


प्यार जताता
भोला सा बचपन
चतुष्पद से |


दीपक जला
स्नेह सिक्त वर्तिका
तिमिर छटा |
आशा