01 जून, 2015

तुम न आये

birahan के लिए चित्र परिणाम
रातें कई बीत गईं
पलकें न झपकीं क्षण भर को
निहारती रहीं उन वीथियों को
शमा के उजाले में |
कब रात्रि से सुबह मिलती
जान नहीं पाती
बस जस तस
जीवन खिचता जाता
एक बोझ सा लगता |
सोचती रहती
कोई उपाय तो होगा
बोझ कम करने का
उलझनें सांझा करने का |
मुझसे मेरी समस्याएँ
बाँट  लेते यदि तुम आते
बोझ  हल्का हो जाता
सुखद जीवन हो जाता |
तुम निष्ठुर निकले
मुझे समझ न पाए
मैं दूर तक देखती रही
पर तुम न आये |
आशा

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