28 फ़रवरी, 2015

नवल पर्ण



नवल पर्ण
कदली सा कोमल
लहलहाता |
वेग वायु का
जब झझकोरता
घबरा जाता |

होता विकल
डाली से जुदा होता
वीथि भूलता |
हार मानता
मार्ग भटक कर
  मुक्ति चाहता |
आशा

25 फ़रवरी, 2015

पराकाष्ठा

यमुना तीरे कदम तले
राधा का रूठना
कान्हां का निहोरे करना
कितना रमणीय होता
प्रेम और भक्ति का मिलना
ना कोई  छल ना  कपट
ना ही दिखावा
 कहीं से कहीं तक
केवल सत्य की पराकाष्टा
समस्त सचराचर में
रूठना कोई दिखावा नहीं
थी मन की अभिव्यक्ति
मनमोहन का मनाना
प्रेम की थी  परणीति   
आत्मा से आत्मा का
अभिनव मिलन है प्रेम
उद्दात्त भाव की अनुपम
 मिसाल इहलोक में
है आत्मिक  झलक
 भक्ति की शक्ति की
प्रेम की अभिव्यक्ति की |
आशा




24 फ़रवरी, 2015

होली की तरंग

दूध में भंग
होली की तरंग में
मन मस्ती में |

बहकाता है
तेरा रंग मुझको
बड़े प्यार से

सुन सजना
होली का रंग फीका
तू है कहाँ |

उड़ा गुलाल
बरसाने की होली
है लट्ठमार |

लाली लिए हैं
अनुराग के रंग
तेरे प्यार की |
आशा