14 मार्च, 2019

जब याद तुम्हारी आएगी




                                       विरहन सोच रही मन में
विचारों में खोई खोई
याद तुम्हारी जब भी आएगी  
हर बार कोई समस्या आएगी 
वह अकेले न रह पाएगी 
क्यूँ समझ में न आ पाएगी 
है ऐसी कैसी उलझन 
जो हल न हो पाएगी
  यूँ तो 
यादों में खो जाना 
बड़ा प्यारा लगता है 
 प्यारा सा एहसास
 
जागृत  होने लगता है
पर कब मुसीबत बढ़ जाएगी
सब को कैसे समझाएगी 
सब की नजरों में  तो न गिर जाएगी 
अभी दीखती बहुत लुभावनी
क्या होगा जब
जब विरह वेदना बढ़ जाएगी
 दिल से न जा पाएगी 
बारम्बार समीप  आकर
 चैन लूट ले जाएगी 
मुझ पर हावी हो
   मुझे बहुत  सताएगी 
मेरे आकर्षण की शक्ति
 क्षीण होती जाएगी 
तुम्हारा नहीं आना
बेचैन मन को न रास आएगा
दृष्टि  दरवाजे पर टिकी रहेगी  
अलगाव फीका न  हो पाएगा 
विरही मन है कितना आकुल
यह सबको कैसे समझाएगी |
आशा

15 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    सूचना के लिए आभार सर |

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  2. मन की दुश्चिंताओं का सुन्दर चित्रण ! बहुत सुन्दर रचना !

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  3. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १८ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      सूचना हेतु आभार श्वेता जी
      होली की शुभ कामनाएं |

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  5. उत्तर
    1. सुप्रभात
      होली की शुभ कामनाएं
      मेरी रचना पर आपकी टिप्पणी बहुत पसंद आई शुभा जी |

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  6. विरह व्यथा को बहुत ही सार्थकता से शब्दों में पिरोया है आपने आदरणीय आशा जी। होली की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई।

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      होली की शुभ कामनाएं
      टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

      हटाएं
  7. जब विरह वेदना बढ़ जाएगी
    दिल से न जा पाएगी
    बारम्बार समीप आकर
    चैन लूट ले जाएगी
    मुझ पर हावी हो
    मुझे बहुत सताएगी
    बहुत सुंदर ,सादर नमस्कार

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    उत्तर
    1. होली की शुभ कामनाएं
      टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद |

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  8. उत्तर
    1. होली की शुभ कामनाएं अनीता जी |
      मेरी रचनाओं पर टिप्पणी कर मुझे बहुत खुशी देती हैं आप |
      धन्यवाद टिप्पणी के लिए |

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  9. विरह भाव का श्याम रंग लिए सुन्दर रचना है ...

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  10. धन्यवाद नासवा जी टिप्पणी के लिए
    आशा

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