28 सितंबर, 2019

कुछ और नहीं चाहिए




                                 हे प्रभू मेरे  ऊपर  बस
 नज़रे  इनायत कर दे
 खाली है  झोली मेरी
 खुशहाली से भर दे |
नहीं चाहिए कृपा  किसी की  
नहीं चाहिए धन  दौलत
 मिल गया है जितना मुझे
है  पर्याप्त वही मेरे लिए |
 और अधिक की चाह नहीं  
ना हो  भेद भाव किसी से
 ना ही किसी बात का संताप
बस अमन चैन से जीवन बीते
एक  रहा अरमान यही |
इसी कामना पूर्ति के लिए
दिन देखा न रात
सारा समय बिताया मैंने
तेरे सजदे कर के |
सब मिलजुल कर रहें  
प्यार बांटे  एक दूसरे से  
है यही  तमन्ना दिल से
जिसकी पूर्ती कर दे |
 आशा

27 सितंबर, 2019

सुर संगम



गीत में स्वरों का संगम
वीणा के तारों की झंकार
तबले की थाप पा
मधुर ध्वनि उत्पन्न होती
कर्ण प्रिय सुर साधना होती|
मन मोहक बंदिश सुन कर
जो प्रसन्नता होती
 ले जाती अतीत की गलियों में !
 घंटों स्वर साधना करते थे
 नई धुनें बनाते थे
कविता को गीत में ढालते थे
 जब तक पूरा काम न होता था
उसी में मन उलझा रहता था
जब पूर्णरूप से कृति
 उभर कर आती थी 
हर बार उसे ही गुनगुनाते थे
वे लम्हे भी कितने सुहाने थे
अपनी बनाई धुनों में खो जाते थे
चाहते थे कोई श्रोता मिले
 दाद दे  उत्साहवर्धन करे
सुर संसार है ही ऐसा
दिन रात व्यस्त रखता है
 कोई बंधन नहीं उम्र का उसके लिए
ज्यों ज्यों वय बढ़ती है
 स्वरलहरी और निखरती है |
                                           
 आशा

26 सितंबर, 2019

आज की प्राथमिकता








है आज पैसा प्रधान 
वर्तमान जीवन शैली में 
सुबह  से ही भागमभाग
 पहिये लग जाते  पैरों में |
  ज़रा भी नहीं ठहराव
 पर कभी न सोच पाए
यह दौड़ भाग किस लिए
केवल धन की प्राप्ति  के लिए |
या किसी और कारण से
है चमक दमक की दुनिया
स्पर्धा में  आगे निकलने की
 जो खुद को पाता दूसरे से आगे |
फूला नहीं समाता अपने कौशल पर
 यत्नों की कोशिश  से सफल होने पर
उसकी  टिकी हैं निगाहें
 नोटों की वर्षा पर |
उनके पीछे दौड़ रहा
 बिना कुछ सोचे समझे
ठोकरें कितनी भी खाए
 वह दर्द सहन कर लेता
पर कदम रोक नहीं पाता |
 उन्हें प्राप्त करने में
येन केन प्रकारेण
 उसे  अमीर बनना है
है यही चाहत मन में
 किसी से नहीं पिछड़ना है |
आशा


24 सितंबर, 2019

अनुगूँज



जहाँ देखती हूँ 
वहीं तुझे पाती हूँ 
तेरी गूँज सुनाई देती 
 सृष्टि के कण कण में |
 ऊँची नीची पगडंडी पर 
पहाड़ियों से घिरी वादी में 
बढ़ता कलरव परिंदों का 
मन हुआ गाने का 
उनका साथ निभाने का
जैसे ही स्वर छेड़ा
अपने ही स्वर गूँजे
प्रत्यावर्तित हुए |
विचारों में खोई आगे बढ़ी
एकांत में बैठ सरिता तट पर 
देखा उर्मियाँ टकराती चट्टान से 
तभी विशिष्ट ध्वनि होती 
कानों में गुंजन करती |
मैंने पाया एक सुअवसर 
प्रकृति के सानिध्य का 
सुना संगीत साथ देते 
कलकल ध्वनि करते जल का |
 तभी दूर से आती ध्वनि 
व्यवधान बनी कर्ण कटु  लगी
टूटी श्रंखला विचारों की
सोचा यह कहाँ से आई |
अनायास बादल गरजे 
बादलों के  गर्जन तर्जन की
टकराई ध्वनि पहाड़ियों से 
हुई प्रत्यावर्तित 
गूँज उसकी तीव्र हुई 
क्या यही अनुगूँज है ?
शब्द नश्वर नहीं होते 
जब भी कुछ कहा जाता 
वे विलीन हो जाते
 किसी नि;सर्ग में
कहीं न कहीं सुनाई देती 
उनकी अनुगूँज भुवन में 
जिसे हम अनुभव करते !
अनुगूँज जब होती
सत्य जीवन का उजागर होता 
जिसे भौतिक और नश्वर 
जगत न जान पाता |


आशा