10 फ़रवरी, 2020

पराग



 
                                                          पराग कण होते  आकर्षक
मकरंद में भीग भीग जाते  
 रंग महक उनकी ऐसी कि
स्वतः कीट पतंगे होते आकर्षित |
  खिले अधखिले  पुष्पों  पर
बैठ गुनगुनाते गुंजन करते  
कभी पास आते कभी दूरी बनाते
आसपास चक्कर लगाते |
 पराग तक पहुँचना चाहते
पराग कणों तक अपनी पहुँच में  
होते सफल जब कोशिश में
 अपार प्रसन्न होते पुष्पों के आलिंगन में |
  झूमते  फूलों की बहार  संग
आसपास ही नर्तन करते मंडराते
परागण में सहायक होते 
 क्रियाकलाप  जब पूर्ण होता
 फलों  की उत्पत्ति होती|  
फल के बीजों से नए पोधे जन्म लेते
कीट पतंगे पराग कण और
मंद गति से  बहती  बयार
अहम् भूमिका निभाते पौधों की उत्पत्ति में | 
आशा

12 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 11 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सुप्रभात
    सूचना के लिए आभार सर |

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  3. सुप्रभात
    मेरी रचना को स्थान देने की सूचना के लिए आभार यशोदा जी |

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  4. अरे वाह ! आपने तो सारी प्रक्रिया को बड़ी आसानी से समझा दिया ! बहुत सुन्दर रचना ! हार्दिक बधाई !

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२५-०१-२०२०) को शब्द-सृजन-८ 'पराग' (चर्चा अंक-३६१२) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….
    अनीता सैनी

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