11 अप्रैल, 2020

वह अकेली





                                      दूर देश से आई चिड़िया
बसेरे की तलाश में
 पर कठिन मार्ग में भटकी
समूह से अलग हो कर |
सब से बिछड़ कर
थी उदास पाकर अकेला खुद को
इस अजनबी दलदल में
अब सब  की याद सता  रही थी |
ऊपर आसमान विशाल
उड़ने की ताकत न रही
 थक गई  थी चाहती थी विश्राम |
नीचे कीचड़ दलदल में
न जाने हो कितनी गहराई उसमें
दोनो ओर जा नहीं सकती
अपनी जान बचा नहीं सकती |
फँस गई है संकट में
किसे चुने व्योम को या दलदल को
एक ओर कुआ  दूसरी ओर है खाई  |
एक वृक्ष के सहारे
 कब तक रहेगी वहां
यूँ भी है अकेली
कैसे बिताएगी जीवन यहाँ |
जब तक रही झुण्ड में
तब भी थी नाराज
ज़रा ज़रा सी बात पर
रूठ जाती थी क्रुद्ध हो जाती ही |
 ईश्वर ने देखा है 
असंतुलित  व्यवहार उसका
सुधरने के लिए ही  ऐसी
नसीहत दी है उसको |
अपनी  दुनिया से हुई दूर अब
 पछ्ता कर अपने में सुधार ला रही है
 पर बहुत देर  हो चुकी है  अपनों से दूर हुए 
 है उसका अंत यहीं अब तो  |
आशा

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