24 जून, 2020

जब भी कोरा कागज़ देखा





जब भी कोरा कागज़ देखा
पत्र तुम्हें लिखना चाहा
लिखने के लिए स्याही न चुनी
आँसुओं में घुले काजल को चुना
जब वे भी जान न डाल पाये
मुझे पसंद नहीं आये
अजीब सा जुनून चढ़ा
अपने खून से पत्र लिखा
यह केवल पत्र नहीं है
मेरा दिल है
जब तक जवाब नहीं आयेगा
उसको चैन नहीं आयेगा
चाहे जितने भी व्यस्त रहो
कुछ तो समय निकाल लेना
उत्तर ज़रूर उसका देना
निराश मुझे नहीं करना
जितनी बार उसे पढूँगी
तुम्हें निकट महसूस करूँगी
फिर एक नये उत्साह से
और अधिक विश्वास से  
तुम्हें कई पत्र लिखूँगी
जब भी उनको पढूँगी
मैं तुम में खोती जाऊँगी
आत्म विभोर हो जाऊँगी |
आशा

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

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  2. मार्मिक रचना ! बहुत सुन्दर ! वैसे इस युग में कौन लिखता है पत्र ! यह तो वीडियो कॉल का ज़माना है !

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  3. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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