22 जून, 2020

जिन्दगी है कितने दिनों की






जिन्दगी के होंगे कितने दिन
कोई भी  बता नहीं पाता
जन्म की तारीख तो याद रह जाती है
पर मृत्यु अथिति सी आता है
 आहट तक नहीं होती उसके आने की
परिजनों को रुला कर चली जाती है
खुद को तो यह  अहसास भी नहीं होता
कब कहाँ कैसे आई
आँखें बंद होते ही प्राण छूटते ही
 मनुज खो जाता है
गहन अन्धकार के आगोश में
वह तब क्या सोचता है
आज तक कोई नहीं जान पाया
यह अनजानी गुत्थी है
कोई भी  हल नहीं कर पाया
 इस अवस्था से बाहर निकल
किसी ने बयान नहीं किया
आखिर वह कहाँ रहा कैसे रहा
 अनुभव इन पलों का  
                  अपने  साथ ही ले गया |
                      आशा  

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 22 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. अजी नहीं ! पढ़िए ज़रा सर्च करके ! इस विषय पर विपुल साहित्य है ! और कई लोगों के संस्मरण भी हैं जो मृत घोषित होने के बाद पुन: जीवित हो गए ! सबसे दिलचस्प विषय है ! मैंने इस पर काफी साहित्य पढ़ा है ! आप भी खोज कर पढ़ डालिए ! आपको भी मज़ा आयेगा !

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  3. धन्यवाद नवीनजी टिप्पणी के लिए |

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  4. धन्यवाद नवीन जी टिप्पणी के लिए |

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