17 फ़रवरी, 2011

क्या वह बचपना था

कई रंगों में सराबोर गाँव का मेला
मेले में हिंडोला
बैठ कर उस पर जो आनंद मिलता था
आज भी यादों में समाया हुआ|
चूं -चूं चरक चूं
आवाज उसके चलने की
खींच ले जाती उस ओर
आज भी मेले लगते हैं
बड़े झूले भी होते हैं
पर वह बात कहाँ जो थी हिंडोले में|
चक्की ,हाथी ,सेठ ,सेठानी
पीपड़ी बांसुरी और फुग्गे
मचलते बच्चे उन्हें पाने को
पा कर उन्हें जो सुख मिलता था
वह अब कहाँ|
आज भी खिलौने होते हैं
चलते हैं बोलते हैं
बहुत मंहगे भी होते हैं
पर थोड़ी देर खेल फेंक दिए जाते हैं
उनमे वह बात कहाँ
थी जो मिट्टी के खिलौनों में |
पा कर उन्हें
बचपन फूला ना समाता था
क्या वह बचपना था
या था महत्व हर उस वस्तु का
जो बहुत प्रयत्न के बाद
उपलब्ध हो पाती थी
बड़े जतन से सहेजी जाती थी |

आशा


16 फ़रवरी, 2011

कैसे भूलूं

कैसे भूलूं
था एक विशिष्ट दिन
जब दी आवाज नव जीवन ने
कच्ची मिट्टी थी
आ सिमटी माँ की गोद में
नए आकार में |
वह स्पर्श माँ का पहला
बड़े जतन से उठाना उसका
बाहों के झूले में आ
उसकी गर्मी का अहसास
बड़ा सुखद था
पर शब्द नहीं थे
व्यक्त करने के लिए |
प्रति उत्तर में थी
मीठी मधुर मुस्कान
उसकी ममता और दुलार
आज भी छिपा रखा है
अपनी यादों की धरोहर में |
झूले से उतर
चूं -चूं जूते पहन
धरती पर पहला कदम रखा
पकड़ उंगली चलना सीखा
अटपटी भाषा में
अपनी बात कहना सीखा
कैसे भूलूं उसे |
बचपन की अनगिनत यादें
सजी हुई हैं मन में |
गुड़ियों के संग खेल
बिताए वे पल कहाँ खो गए
कैसे खोजूं ?
था पहला दिन शाला का
इतनी दूर रहना माँ से
उसके प्यार भरे आंचल से
था कितना कठिन
कैसे भूलूं
छोटी सी बेबी कार
स्टेयरिंग पर हाथ
और चलते पैर पैडल पर
तेज होती गति देख
पीछे से काका की आवाज
बेबी साहब ज़रा धीरे
दृश्य है साकार आज भी
मन के दर्पण में
कितना अच्छा लगता है
वह समय याद करना |
शाला में आधी छुट्टी में
जाड़ों की कुनकुनी धूप में
रेत के ढेर पर खेलना
मिट्टी के घरोंदे बनाना
फूलों से उन्हें सजाना
बागड़ पर टहनियों की कतार
घर के आगे
बगीचे की कल्पना
आज भी भूल नहीं पाई |
था डर बस नक्कू सर की
स्केल की मार का
पर आस पास होता था
बस प्यार ही प्यार
कैसे भूलूं उन यादों को
सोचती हूँ वह समय
ठहर क्यूँ नहीं गया |

आशा






15 फ़रवरी, 2011

गरीब की हाय

होता नहीं अच्छा
गरीब की हाय लेना
उसकी बद्दुआ लेना
उसकी हर आह
तुम्हारा चैन ले जाएगी
दिल दहला जाएगी
जिसकी कीमत
बहुत कुछ खो कर
चुकाना होगी |
हर आँसू तुम्हे
भीतर तक हिला जाएगा
चेहरे से जब नकाब उतरेगा
असली चेहरा सबके समक्ष होगा |
पर हर ओर तबाही
मच जाएगी
उसके रँग लाते ही
तुम्हारी जड़ें हिल जाएँगी |
झूट का सहारा ले
आसमान छूने का भरम
धुल धूसरित हों जाएगा
सब को असली रूप नज़र आएगा |
मत भूलो
कभी तुम भी गरीब थे
उनका पैसा लूट जो हों आज
कई घर उजाड़ आए हों |
जब आँसू ओर आहों का सैलाब
लावा बन जाएगा
तुम्हे कहीं का ना छोड़ेगा
समूल नष्ट कर जाएगा |

आशा






13 फ़रवरी, 2011

केवल तेरे ही पास

मैं चाहता न था बंधना
किसी भी बंधन में
पर न जाने कहाँ से आई
तू मेरे जीवन में |
सिर्फ आती
तब भी ठीक था
क्यूँ तूने जगह बनाई
मेरे बेरंग जीवन में |
मुझे बांधा
अपने मोह पाश में
सांसारिकता के
बंधन में |
बंधन तोड़ नहीं पाता
जब भी प्रयत्न करता हूँ
और उलझता जाता हूँ
तेरे फैलाए जाल में |
है तू कौन मेरी ?
क्यों चाहती जी जान से मुझे
ऐसा है मुझ में क्या ?
मैं जानना चाहता हूँ |
जब भी सोचता हूँ
स्वतंत्र रहने की चाह
गलत लगने लगती है |
फिर सोचता हूँ
बापिस आ जाऊं
अपने कदम
आगे न बढ़ाऊं|
पर चला आता हूँ
केवल तेरे ही पास
तुझे उदास देख नहीं पाता
नयनों में छलकते प्यार को
नकार नहीं पाता
और डूब जाता हूँ
तेरे प्यार में |

आशा




10 फ़रवरी, 2011

प्रारब्ध की विडंबना

सारे बच्चे खेल रहे थे
वह देख रहा था टुकुर -टुकुर
कोई नहीं खिलाता उसको
सभी करते ना नुकुर
चाहता था बच्चों में खेलना
जब भी हाथ बढ़ाया उसने
साथ खेलने के लिए
बहुत हंसी उडाई उसकी
और उसको टाल दिया
वह बहुत दुखी हो जाता
जब चल नहीं पाता |
माँ पापा जब बाहर जाते
कमरे में बंद उसे कर जाते
भूले से यदि ले जाते
दया के पात्र बन जाते |
जब भी कोई उनसे बात करता
' बेचारा ' से प्रारम्भ करता
बचपन में पोलियो ने ग्रसा
अब यही अहसास दिला कर
सारा ज़माना मार रहा |
पर वह निष्क्रीय नहीं हुआ
कोई कमी नहीं करता
चलने के प्रयत्न में
अभ्यास निरंतर करने से
वह भी सक्षम हो रहा है
आने वाले कल के लिए
सुनहरे सपने बुन रहा है
प्रारब्ध की विडंबना से
उसे अब दुःख नहीं होता
क्यूँ की वह समझ गया है
नियति से समन्वय करना |

आशा


08 फ़रवरी, 2011

दम्भ

कठिन होता है
बिना सुविधाओं के रहना,
पर असंभव नहीं |
परन्तु जीना होता असंभव
आवश्यकताओं की पूर्ति बिना ,
है यह केवल दम्भ
जी सकते हैं अर्थ के बिना ,
पार कर सकते हैं कठिन डगर
आवश्यकताएं पूरी हुए बिना |
यही दम्भ उन्हें
ऊपर उठने नहीं देता ,
जो सोचते हैं करने नहीं देता ,
वे केवल सोचते हैं
आदर्शों की बात करते हैं ,
कल्पना जगत में विचरते हैं ,
कर कुछ नहीं सकते |
झूठा घमंड उन्हें
बड़बोला ही बना पाता है ,
वे अभावों में जीते हैं
तिल -तिल क्षय होते हैं |
ऊँची सोच बड़ी बातें
लगती पुस्तकों में ही अच्छी |
हैं वे सच्चाई से दूर बहुत,
जो कुछ प्राप्त नहीं कर पाते,
कई कहानियां सुनाते हैं
हो दम्भ से सराबोर |
यह तक भूल जाते हैं
कि होता प्रयत्न आवश्यक
कोई कार्य करने के लिए
सफलता पाने के लिए |
वह भी यदि सफल हो
और सही राह दिखाई दे
तभी राह
पर चलना
सहज हो पाता है
आगे बढ़ने के लिए |

आशा







07 फ़रवरी, 2011

आशा की किरण

नित आती जाती समस्याएँ
उनका निदान या समाधान
कर सकते हो यदि
और सांझा कर सकते हो उनसे
तभी नजदीकियाँ बढ़ाना
वरना ना छेड़ना तार दिल के
बिना बात ना उलझाना
अजनबी सा व्यवहार करके |
है समय बड़ा बलवान
हर पल कीमती है
उसे ही यदि भुला दिया
वह लौट कर ना आएगा |
अपनी उलझनें सुलझाने के लिए
होता हर व्यक्ति सक्षम
सांझा अपनों से होता है गैरों से नहीं
यदि सही सलाह ना दे पाये
साथ रहना क्या आवश्यक है |
जो जाल बुना अपने आसपास
चाहती नहीं उसमें उलझ कर रह जाऊँ
प्रयास यदि कुछ तुम भी करते
कुछ भ्रम मेरे भी टूटते
गुत्थी सुलझाने का अवसर मिलता
तभी समस्या हल होती
आशा की किरण नजर आती
सोये अरमान जगा पाती |

आशा