25 फ़रवरी, 2012

भूली सारे राग रंग


भूली सारे राग रंग 
पड़ते  ही धरा पर कदम
स्वप्न सुनहरा ध्वस्त हो गया
सच्चाई से होते ही वास्ता
 दिन पहले रंगीन
 हुआ करते थे
भरते विविध रंग जीवन में
थी राजकुमारी सपनों की
खोई रहती थी उनमें
पर अब ऐसा कुछ भी नहीं
जो पहले हुआ करता था
है एक जर्जर मकान
और आवरण बदहाली का
देख इसे हताशा जन्मीं
घुली कटुता जीवन में
फिर साहस ने साथ दिया
और कूद पडी अग्नी  में
सत्य की परिक्षा के लिए
दिन रात व्यस्त रहती
कब दिन बीतता कब रात होती
वह जान नहीं पाती
 अब है समक्ष उसके
जर्जर मकान और जलता दिया
बाती जिसकी घटती जाती
कसमसाती बुझने के लिए
गहन विचार गहरी पीड़ा लिए
थकी हारी वह सोचती
कहीं कहानी दीपक की
है उसी की तो नहीं |
आशा





22 फ़रवरी, 2012

ऋतु फागुन की


आई मदमाती ऋतु
फागुन की
चली फागुनी बयार
वृक्षों ने किया श्रृंगार
हरे पीले वसन पहन
झूमते बयार संग
थाप पर चांग की
थिरकते कदम
फाग की मधुर धुन
कानों में घुलती जाए
पिचकारी में रंग भर
लिए साथ अबीर  गुलाल
रंग खेलते बालवृंद
उत्साह और खुशी
छलक छलक जाए
प्रियतम के रंग में डूबी
भीगी चूनर गौरी की
गोरे गालों की लाली
कुछ कहती नजर आए
उसके नयनों की भाषा
कानों में झुमकों की हाला
भीगा तन मन
वह विभोर हुई जाए |
आशा


19 फ़रवरी, 2012

है कैसी दुविधा


जाने का जब मन हुआ
मुंह उठा कर चल दिया
ठोकर लगी सम्हल न पाया
माँ की सीख याद आई
नीचे देख सदा चलना
निगाहें नीची कर चला
आगे देख नहीं पाया
टकराते टकराते बचा
पर चालाक ने शोर मचाया
"है अंधा क्या ?
जो आगे भी देख नहीं पाता "
किसी ने मुझे उठाया
और एक उपदेश थमाया
देख कर दाएँ बाएँ
कदम बढ़ाना चाहिए
सड़क पर चलने के लिए
सतर्क होना चाहिए
क्रोध मुझे बहुत आया
स्वयम पर
और आज की दुनिया पर
वर्जनाएं सहते सहते
मन मेरा फटने लगा
पैबंद भी कब तक लगाता
वही बातें सोच कर
मन विचलित होता जाता
जो चाहता हो न पाता
जीना दूभर हो गया
आज के इस दौर में
खुद में रमूं या जग की सुनूं
है कैसी दुविधा
जिससे उभर नहीं पाता |
आशा


16 फ़रवरी, 2012

दोषी कौन


अर्श से ज़मीन तक
वजूद है तेरा
होता सुखद अहसास
सानिध्य पा तेरा
आता निखार सृष्टि में
देख पावन रूप तेरा
स्वच्छ सुन्दर छवि तेरी
दे जाती खुशी
तुझ में आती विकृति
कर जाती दुखी
दिनों दिन तेरी बदहाली
बढ़ने लगी जब से
कारण खोजा तब पाया
मनुष्य के सिवाय
कोइ और नहीं
है वही सबसे बड़ा
कारक कारण
और खलनायक
तेरी बदहाली का
स्वार्थ सिद्धि के लिए
गिरा इस हद तक
 आगा पीछा 
सोच न पाया
निजी स्वार्थ सबसे ऊपर
जल हो या थल
या विष बुझा वायु मंडल
कारक सब का 
वही दीखता
स्वार्थ से ऊपर उठ कर
जब वही जागृत होगा
 संरक्षण तेरा कर पाएगा
मुक्ति प्रदूषण से मिलेगी 
प्रसन्नता  छलकने लगेगी
तुझ में नई चेतना पा कर |
आशा

13 फ़रवरी, 2012

अब अनजान नहीं

 खिली सुबह की धुप सी
बाली उम्र की रूपसी
डूबी प्यार में ऐसी
वह चंचला झुकती गयी
फूलों से लदी डाली सी
दुनिया से बेखबर
लिपटी आगोश में
जाने कब डाली टूटी
धराशायी   हुई
जब चर्चे आम हुए 
गलती का अहसास हुआ
पश्च्याताप में डूबी
शर्म से सिमटी छुईमुई सी
जब समय पा  दुःख भूली
 आगे बढ़ कर किसी ने
दिया सहारा हौले से
लाल गुलाब का फूल दे
मनोभाव पढ़ना चाहे  
पहले सहमी सकुचाई
फिर धीमें से मुस्काई
हाथ थाम बढ़ाए कदम
एक नई राह पर
  अजनवी राह चुनी 
 गहन आत्मविश्वास से
 वह अब अनजान नहीं 
जीवन की सच्चाई से
भरम उसका टूट चुका है 
स्वप्नों की दुनिया से |
आशा 



11 फ़रवरी, 2012

कह जाती कुछ और कहानी

निराला संसार कल्पना का
असीमित भण्डार उसका
पर घिरा बादलों से
कुछ स्पष्ट नहीं होता |
जो दिखाई दे  वह होता नहीं
जो होता वह दीखता नहीं
बादलों की ओट से
हल्की सी झलक दिखा जाता
सदा अपूर्ण ही रहता |
नित्य नया संसार बनता
कभी सिमटता कभी बिखरता
उस पर रह न पाता अंकुश
बंधन में पहले भी न था
आज भी है   दूर उससे
कल क्या हो पता नहीं |
फिर भी यही सोच रहता
अंत होगा क्या इसका
है आस तभी तक
जब तक उल्टी गिनती शुरू न हुई
बाद में क्या हश्र हो
लौट कर किसीने बताया नहीं
पर है एक विशिष्ट पहलू
रंगीनी इसकी  दे जाती सुकून
कालिमा जब दिखती
छीन ले जाती खुशी |
इसकी अपनी दुनिया में
 जब छा जाती गहन उदासी
कह जाती कुछ और कहानी |
आशा




08 फ़रवरी, 2012

क्षणिकाएं

(१)
जज्बा प्रेम का 
जुनून  उसे पाने का 
भय  उसे  खोने का
कह जाता बहुत कुछ 
उसके  होने का |
(२)
सारी  दुनिया एक तरफ 
प्रेम  अकेला एक तरफ
फिर भी सबसे शक्तिशाली
दुनिया उसके आगे हारी |
(३)
प्रेम  की है परिभाषा 
 आज के सन्दर्भ में
भोगी ,भोग्या और भोग
बस यही है प्रेम रोग |
(४) 
सुंदरता  का पैमाना
प्रेम ने नहीं माना 
जो  केवल मन भाया 
अपना उसे बना पाया |
आशा