01 मार्च, 2012

बहुत देर हो चुकी थी

खेलते बच्चे मेरे घर के सामने
करते शरारत शोर मचाते
पर भोले मन के
उनमें ही ईश्वर दीखता
बड़े नादाँ नजर आते
दिल के करीब आते जाते
निगाह पड़ी पालकों पर
दिखे उदास थके हारे
हर दम रहते व्यस्त
बच्चों के लालनपालन में
रहते इतनी उलझनों में
खुद को भी समय न दे पाते
फिर देखा एक और सत्य
बड़े होते ही उड़ने लगते
भूलते जाते बड़ों को
उनके प्रति कर्तव्यों को
कई बार विचार किया
फिर निश्चय किया
कोइ संतान ना चाहेंगे
बस यूँ ही खुश रह लेंगे
पर आज मैं और वह
जी रहे नीरस जीवन
ना चहलपहल ना रौनक घर में
आसपास फैली उदासी
अब लग रहा निर्णय गलत
जो पहले हमने लिया था
बच्चे तो हैं घर की रौनक
है आवश्यक उनका भी होना
घर है उनके बिना अधूरा
पर जब तक
आवश्यकता समझी
बहुत देर हो चुकी थी |
\आशा



27 फ़रवरी, 2012

देखे विहग व्योम में


देखे विहग व्योम में उड़ते
लहराती रेखा से
थे अनुशासित इतने
ज़रा न इधर उधर होते
प्रथम दिवस का  दृश्य
 हुआ साकार फिर से
 यह क्रम  रोज सुबह रहता
होते ही प्रातः बढ़ते कदम
खुले आकाश के नीचे
यही मंजर देखने के लिए 
अब तो नियम सा हो गया
उन्हें देखने का
ना होता कोइ दिग्भ्रमित
ना ही  बाहर  रेखा से
अग्र पंक्ति का पीछा करते
कतार बद्ध आगे बढ़ते
हुआ विस्मय यह देख
समय तक निश्चित उनका
मोल समय का जानते
उसे साध कर चलते
गति थी एकसी सबकी
लगता था क्रम तक निश्चित
शायद उनसे ही सीखा हो
कदम ताल करना
अग्र पंक्ति से कदम मिला कर
दूर तक जाना
हो स्वअनुशासित परेड में 
एक ताल पर चलना |
आशा

25 फ़रवरी, 2012

भूली सारे राग रंग


भूली सारे राग रंग 
पड़ते  ही धरा पर कदम
स्वप्न सुनहरा ध्वस्त हो गया
सच्चाई से होते ही वास्ता
 दिन पहले रंगीन
 हुआ करते थे
भरते विविध रंग जीवन में
थी राजकुमारी सपनों की
खोई रहती थी उनमें
पर अब ऐसा कुछ भी नहीं
जो पहले हुआ करता था
है एक जर्जर मकान
और आवरण बदहाली का
देख इसे हताशा जन्मीं
घुली कटुता जीवन में
फिर साहस ने साथ दिया
और कूद पडी अग्नी  में
सत्य की परिक्षा के लिए
दिन रात व्यस्त रहती
कब दिन बीतता कब रात होती
वह जान नहीं पाती
 अब है समक्ष उसके
जर्जर मकान और जलता दिया
बाती जिसकी घटती जाती
कसमसाती बुझने के लिए
गहन विचार गहरी पीड़ा लिए
थकी हारी वह सोचती
कहीं कहानी दीपक की
है उसी की तो नहीं |
आशा





22 फ़रवरी, 2012

ऋतु फागुन की


आई मदमाती ऋतु
फागुन की
चली फागुनी बयार
वृक्षों ने किया श्रृंगार
हरे पीले वसन पहन
झूमते बयार संग
थाप पर चांग की
थिरकते कदम
फाग की मधुर धुन
कानों में घुलती जाए
पिचकारी में रंग भर
लिए साथ अबीर  गुलाल
रंग खेलते बालवृंद
उत्साह और खुशी
छलक छलक जाए
प्रियतम के रंग में डूबी
भीगी चूनर गौरी की
गोरे गालों की लाली
कुछ कहती नजर आए
उसके नयनों की भाषा
कानों में झुमकों की हाला
भीगा तन मन
वह विभोर हुई जाए |
आशा


19 फ़रवरी, 2012

है कैसी दुविधा


जाने का जब मन हुआ
मुंह उठा कर चल दिया
ठोकर लगी सम्हल न पाया
माँ की सीख याद आई
नीचे देख सदा चलना
निगाहें नीची कर चला
आगे देख नहीं पाया
टकराते टकराते बचा
पर चालाक ने शोर मचाया
"है अंधा क्या ?
जो आगे भी देख नहीं पाता "
किसी ने मुझे उठाया
और एक उपदेश थमाया
देख कर दाएँ बाएँ
कदम बढ़ाना चाहिए
सड़क पर चलने के लिए
सतर्क होना चाहिए
क्रोध मुझे बहुत आया
स्वयम पर
और आज की दुनिया पर
वर्जनाएं सहते सहते
मन मेरा फटने लगा
पैबंद भी कब तक लगाता
वही बातें सोच कर
मन विचलित होता जाता
जो चाहता हो न पाता
जीना दूभर हो गया
आज के इस दौर में
खुद में रमूं या जग की सुनूं
है कैसी दुविधा
जिससे उभर नहीं पाता |
आशा


16 फ़रवरी, 2012

दोषी कौन


अर्श से ज़मीन तक
वजूद है तेरा
होता सुखद अहसास
सानिध्य पा तेरा
आता निखार सृष्टि में
देख पावन रूप तेरा
स्वच्छ सुन्दर छवि तेरी
दे जाती खुशी
तुझ में आती विकृति
कर जाती दुखी
दिनों दिन तेरी बदहाली
बढ़ने लगी जब से
कारण खोजा तब पाया
मनुष्य के सिवाय
कोइ और नहीं
है वही सबसे बड़ा
कारक कारण
और खलनायक
तेरी बदहाली का
स्वार्थ सिद्धि के लिए
गिरा इस हद तक
 आगा पीछा 
सोच न पाया
निजी स्वार्थ सबसे ऊपर
जल हो या थल
या विष बुझा वायु मंडल
कारक सब का 
वही दीखता
स्वार्थ से ऊपर उठ कर
जब वही जागृत होगा
 संरक्षण तेरा कर पाएगा
मुक्ति प्रदूषण से मिलेगी 
प्रसन्नता  छलकने लगेगी
तुझ में नई चेतना पा कर |
आशा

13 फ़रवरी, 2012

अब अनजान नहीं

 खिली सुबह की धुप सी
बाली उम्र की रूपसी
डूबी प्यार में ऐसी
वह चंचला झुकती गयी
फूलों से लदी डाली सी
दुनिया से बेखबर
लिपटी आगोश में
जाने कब डाली टूटी
धराशायी   हुई
जब चर्चे आम हुए 
गलती का अहसास हुआ
पश्च्याताप में डूबी
शर्म से सिमटी छुईमुई सी
जब समय पा  दुःख भूली
 आगे बढ़ कर किसी ने
दिया सहारा हौले से
लाल गुलाब का फूल दे
मनोभाव पढ़ना चाहे  
पहले सहमी सकुचाई
फिर धीमें से मुस्काई
हाथ थाम बढ़ाए कदम
एक नई राह पर
  अजनवी राह चुनी 
 गहन आत्मविश्वास से
 वह अब अनजान नहीं 
जीवन की सच्चाई से
भरम उसका टूट चुका है 
स्वप्नों की दुनिया से |
आशा 



11 फ़रवरी, 2012

कह जाती कुछ और कहानी

निराला संसार कल्पना का
असीमित भण्डार उसका
पर घिरा बादलों से
कुछ स्पष्ट नहीं होता |
जो दिखाई दे  वह होता नहीं
जो होता वह दीखता नहीं
बादलों की ओट से
हल्की सी झलक दिखा जाता
सदा अपूर्ण ही रहता |
नित्य नया संसार बनता
कभी सिमटता कभी बिखरता
उस पर रह न पाता अंकुश
बंधन में पहले भी न था
आज भी है   दूर उससे
कल क्या हो पता नहीं |
फिर भी यही सोच रहता
अंत होगा क्या इसका
है आस तभी तक
जब तक उल्टी गिनती शुरू न हुई
बाद में क्या हश्र हो
लौट कर किसीने बताया नहीं
पर है एक विशिष्ट पहलू
रंगीनी इसकी  दे जाती सुकून
कालिमा जब दिखती
छीन ले जाती खुशी |
इसकी अपनी दुनिया में
 जब छा जाती गहन उदासी
कह जाती कुछ और कहानी |
आशा




08 फ़रवरी, 2012

क्षणिकाएं

(१)
जज्बा प्रेम का 
जुनून  उसे पाने का 
भय  उसे  खोने का
कह जाता बहुत कुछ 
उसके  होने का |
(२)
सारी  दुनिया एक तरफ 
प्रेम  अकेला एक तरफ
फिर भी सबसे शक्तिशाली
दुनिया उसके आगे हारी |
(३)
प्रेम  की है परिभाषा 
 आज के सन्दर्भ में
भोगी ,भोग्या और भोग
बस यही है प्रेम रोग |
(४) 
सुंदरता  का पैमाना
प्रेम ने नहीं माना 
जो  केवल मन भाया 
अपना उसे बना पाया |
आशा 








07 फ़रवरी, 2012

साथ चला साये सा

है मृत्यु कितनी दुखदाई 
अहसास  उसका इससे भी गहरा 
उर  में छिपे ग़मों को  
बाहर  आने नहीं देता |
पहचान  हुई जब से 
 साथ नहीं छोड़ा 
  साथ  चला साये सा 
लगने   लगी रिक्तता उसके बिना |
है  दुनिया बाजार ग़मो का 
जगह  जगह वे बिकते 
कई  होते खरीदार 
विक्रेता  बेच कर चल देते |
कहाँ  कहाँ नहीं भटका
अशांत मन लिए
काँटों  के अलावा कुछ न मिला
सीना  छलनी हुआ 
तब  उन्हीं ने साथ  दिया |
यदि है  यही दस्तूर  दुनिया का
हम भी उनका साथ न छोड़ेंगे 
छिपा  कर दिल में उन्हें  
साथ उन्हीं  के जी लेंगे |
आशा 




















05 फ़रवरी, 2012

प्रतीक्षा

                                                                                                 
ह्रदय  पटल पर
अंकित शब्द 
जो  कभी सुने थे 
यादों  में ऐसे बसे 
कि  भूल नहीं पाता
कहाँ कहाँ नहीं भटका 
खोज  में उसकी 
मिलते  ही 
क्यूँ न बाँध लूं 
उसे  स्नेह पाश में 
जब  भी किसी
गली तक पहुंचा
मार्ग अवरुद्ध मिला
जब उसे नहीं पाया 
हारा  थका लौट आया 
आशा  का दामन न छोड़ा
लक्ष्य  पर अवधान रहा
आगे क्या करना है
बस यही मन में रहा 
हो  यदि दृढ़ इच्छा शक्ति
होता कुछ भी नहींअसंभव
फिर भी यदि
वह नहीं मिल पाई
आस का दीपक जला 
चिर  संध्या तक 
प्रतीक्षा करूँगा
आशा














03 फ़रवरी, 2012

पहाड़ उसे बुला रहे

अश्रुपूरित नयनों से
वह देखती अनवरत
दूर उस पहाड़ी को
जो ख्वाव गाह रही उसकी
आज है वीरान
कोहरे की चादर में लिपटी
किसी उदास विरहनी सी
वहाँ खेलता बचपन
स्वप्नों में डूबा यौवन
सजता रूप
किसी के इन्तजार में
है अजीब सी रिक्तता
वहाँ के कण कण में
गहरी उदासी छाई है
उन लोगों में
भय दहशतगर्दों का
विचलित कर जाता
वे चौंक चौक जाते
आताताई हमलों से
कई बार धोखा खाया
पर प्रेम बांटना ना भूले
जो भी द्वारे आए
उसे ही प्रभु जान लेते
पहाड़ उसे बुला रहे
याद वहां की आते ही
वह खिचती जा रही
बंधी प्रीत की डोर में |
आशा


























31 जनवरी, 2012

भटकाव

जपते माला गुरु बनाते
नीति धर्म की बातें करते
पर आत्मसात न कर पाते
सब से वंचित रह जाते |
संचित पूंजी भी चुक जाती
व्यर्थ के आडम्बरों में
बातें यूँही रह जातीं
पुस्तकों के पन्नों में |
है ज्ञान अधूरा ,ध्यान अधूरा
जीवन संग्राम अधूरा
फिर भी सचेत न हो पाते
इधर उधर भटकते रहते
कस्तूरी मृग से वन में
अस्थिर मन की चंचलता
चोला आधुनिकता का
अवधान केंद्रित नहीं रहता
रह जाते दूर सभी से
खाली हाथ विदा लेते
इस नश्वर संसार से |
आशा

















28 जनवरी, 2012

स्वर नहीं मिलते

कुछ शब्दों को
स्वर नहीं मिलते
यदि भूले से मिल भी गए
कहीं पनाह नहीं पाते |
वे होते मुखर एकांत पा
पर होने लगते गुम
समक्ष सबके |
ऐसे शब्दों का लाभ क्या
हैं दूर जो वास्तविक धरा से
हर पल घुमड़ते मन के अंदर
पर साथ नहीं देते समय पर |
स्वप्नों में होते साकार
पर अभिव्यक्ति से कतराते
शब्द तो वही होते
पर रंग बदलते रहते
वे जिस रंग में रम जाते
वहीँ ठिठक कर रह जाते
स्वर कहीं गुम हो जाते |
आशा






















26 जनवरी, 2012

बेटी

बेटी अजन्मी सोच रही 
क्यूँ  उदास माँ दिखती है 
जब  भी कुछ जानना चाहूँ 
यूँ  ही टाल देती है|
रह ना पाई कुलबुलाई 
समय देख प्रश्न  दागा 
क्या  तुम मुझे नहीं चाहतीं 
मेरे  आने में है दोष क्या 
क्यूँ  खुश दिखाई नहीं देतीं ?
 माँ  धीमे से मुस्कुराई 
पर  उदासी न छिपा पाई 
बेटी  तू यह नहीं जानती 
सब  की चाहत है बेटा 
जब  तेरा आगमन होगा 
सब  से मोर्चा   लेना होगा 
यही  बात चिंतित करती 
मन  में उदासी भरती |
जल्दी  से ये दिन बीते 
खिली  रुपहली धूप 
आज  मेरे आँगन में 
गूंजी  तेरी किलकारी 
इस  सूने उपवन में
मिली  खुशी अनूप 
तुझे  पा लेने में |
देखा  सोच बदलता मैनें 
अपने  ही घर में |
कितना  सुखमय है जीवन 
आज  में जान पाई 
रिश्तों  की गहराई 
यहीं  नजर आई |
तेरी  नन्हीं बाहों की उष्मा
और प्यार भरी सुन्दर अँखियाँ 
स्वर्ग कहीं से ले  आईं 
मेरे  मुरझाए जीवन में |
आशा




































24 जनवरी, 2012

अपेक्षा

हूँ स्वतंत्र ,मेरा मन स्वतंत्र
नहीं स्वीकार कोइ बंधन
जहां चाहता वहीं पहुंचता
उन्मुक्त भाव से जीता
नियंत्रण ना कोइ उस पर
निर्वाध गति से सोचता
जब मन स्वतंत्र
ना ही नियंत्रण सोच पर
फिर अभिव्यक्ति पर ही रोक क्यूं ?
जब भावना का ज्वार उठता
अपना पक्ष समक्ष रखता
तब वर्जना सहनी पडती
अभिव्यक्ति परतंत्र लगती |
कानूनन अधिकार मिला
अपने विचार व्यक्त करने का
कलम उठाई लिखना चाहा
कारागार नजर आया |
अब सोच रहा
है यह किसी स्वतंत्रता
अधिकार तो मिलते नहीं
कर्तव्य की है अपेक्षा |
आशा








19 जनवरी, 2012

आशा अभी बाकी है



                                                                            
फैली उदासी आसपास 
झरते  आंसू अविराम 
अफसोस है कुछ खोने का 
अनचाहा घटित होने का |
आवेग जब कम होता 
वह सोचता कुछ खोजता 
एकटक देखता रहता 
दूर  कहीं शून्य में |
हो  हताश कुछ बुदबुदाता 
जैसे ही कुछ याद आता 
निगाहें उठा फिर ताकता
उसी अनंत में |
छलकते आंसुओं को 
रोकने की चेष्ठा कर 
धुंधलाई आँखों से झांकता 
फिर से परम शून्य में 
जाने कितने अस्तित्व 
समा गए अनंत में 
फिर भी खोजता अनवरत 
गंभीर सोच जाग्रत होता 
अशांत मन में |
जो चाहा पूर्ण न हो पाया 
प्रयत्न अधूरा रहा फिर भी 
है सफलता से दूर भी 
पर  आशा  अभी बाकी है |
आशा 





15 जनवरी, 2012

क्यूँ न वर्तमान में जी लें

बैठे आमने सामने देखते
 बनती मिटती कभी सिमटतीं 
आती जाती लकीरें चेहरों पर
मुस्कान  ठहरती कुछ क्षण को 
फिर कहीं तिरोहित हो जाती 
भाव भंगिमा के परिवर्तन
परिलक्षित करते अंतर मन |
वे सब भी क्षणिक लगते 
होते हवा के झोंके से 
जो आए ले जाए 
उन  लम्हों की नजाकत को 
लगते कभी  स्वप्नों से 
प्रायः  जो सत्य नहीं होते 
कुछ पल ठहर विलुप्त होते |
भिन्न नहीं  है दरिया भी 
बहता जल उठाती लहरें 
टकरा कर चट्टानों से 
मार्ग ही बदल देते 
अवरोध  को नगण्य मान 
बहती जाती अविराम 
पर  चिंतित, कब जल सूख जाए 
अस्तित्व  ही ना गुम हो जाए 
यही  सोच पल भर मुस्काते 
सुख दुःख तो आते जाते
है जीवन क्षणभंगुर 
क्यूँ न वर्त्तमान में जी लें |
आशा 









 



12 जनवरी, 2012

मृग तृष्णा

जल देख आकृष्ट हुआ 
घंटों  बैठ अपलक निहारा 
आसपास  था जल ही जल
प्यास जगी बढ़ने लगी |
खारा पानी इतना कि 
बूँद  बूँद जल को तरसा  
गला  तर न कर पाया 
प्यासा था प्यासा ही रहा |
तेरा प्यार भी सागर जल सा 
मन  ने जिसे पाना चाहा 
पर  जब भी चाहत उभरी 
 खारा जल ही मिल पाया |
रही  मन की प्यास अधूरी 
मृग  तृष्णा सी बढती गयी 
जिस जल के पीछे भागा 
मृग  मारीचिका ही नजर आई |
सागर  सी गहराई प्यार की
आस अधूरी दीदार की 
वर्षों बीत गए
नजरें टिकाए द्वार पर|
मुश्किल से कटता हर पल
तेरी राह देखने  में
आगे  होगा क्या  नहीं जानता 
फिर  भी बाकी है अभी आस
 और प्यास तुझे पाने की |
आशा 


















10 जनवरी, 2012

गहन विचार

गहन गंभीर जटिल विचार 
बहते   जाते  सरिता जल से 
होते प्रवाह मान  इतने
रुकने का नाम नहीं लेते |
है गहराई कितनी उनमें 
नापना भी चाहते 
पर अधरों के छू किनारे 
पुनःलौट लौट आते |
कभी होते तरंगित भी 
तटबध तक तोड़ देते
मंशा रहती प्रतिशोध की 
तब किसी को नहीं सुहाते |
तभी  कोइ विस्फोट होता 
हादसों का जन्म होता 
गति बाधित तो होती 
पर पैरों की बेड़ी न बनती |
सतत अनवरत उपजते बिचार 
गति पकड़ आगे बढ़ते 
बांह समय की थाम चलते 
प्रवाहमान बने रहते |

आशा




07 जनवरी, 2012

स्याही रात की

जब गहराती स्याही रात की
बेगानी लगती कायनात भी
लगती चमक तारों की फीकी
चंद्रमा की उजास फीकी |
एक अजीब सी रिक्तता
मन में घर करती जाती
कहर बरपाती नजर आती
हर आहट तिमिर में |
सूना जीवन उदास शाम
और रात की तनहाई
करती बाध्य भटकने को
वीथियों में यादों की |
बढ़ने लगती बेचैनी
साँसें तक रुक सी जातीं
राह कोई फिर भी
नहीं सूझती अन्धकार में |
क्या कभी मुक्ति मिल पाएगी
इस गहराते तम से
सूरज की किरण झाँकेगी
बंजर धरती से जीवन में |
कभी तो रौशन हो रात
शमा के जलने से
यादों से मुक्त हो
खुली आँखों में स्वप्न सजें |
आशा



04 जनवरी, 2012

अफवाहें

उडाती अफवाहें बेमतलब 
तुमने शायद नहीं सुनीं 
जब सामने से निकलीं 
लोगों ने कुछ सोचा और |
मन ही मन कल्पना की 
कोइ सन्देश दिया होगा 
तुम मौन थीं तो क्या हुआ 
आँखों से व्यक्त किया होगा |
कुछ  मन चले छिप छिप  कर
सड़क किनारे खड़े हुए 
इशारों से बतियाते रहते 
छींटाकशी से बाज न आते |
हम तुम तो कभी भी
आपस  में रूबरू न हुए
ना कभी आँखें हुईं चार
ना ही उपजा कभी प्यार |
फिर  भी ऐसा क्यूँ ?
मनचलों बेरोजगारों की
शायद फितरत है यही
कटाक्ष  कर प्रसन्न होने  की |
मन  ही मन ग्लानी होती है
उनकी सोच कितनी छोटी है
यदि अफवाहें तुम तक पहुंची
तुम भी क्या वही सोचोगी
जो मैं सोच रहा हूँ ?
आशा






01 जनवरी, 2012

शब्द

शब्दों का दंगल आस पास 
अस्थिर करता मन कई बार 
दंगल का कैसे ध्यान धरें 
आकलन  शब्दों का कौन करे |
नहीं  सरल शब्दों को तोलना 
उन  वाणों से बच रहना
सत्य असत्य की पहिचान कर 
सही  अर्थ निकाल पाना |
कभी होता शब्द भी उदास 
देख   अपनी अवहेलना
है वह उस तारे सा 
जो टूटा खंड खंड होगया 
जाने  कहाँ विलुप्त हो गया |
उस शब्द का है महत्त्व अधिक 
जो कुछ बजन रखता हो 
जिस पर कोई अमल करे 
मूल्य  उसका समझ सके |
अनर्गल कहे गए शब्द 
बदलते  रहते शोर में 
और खो जाते भीड़ में 
सिमट जाते किसी आवरण में |
अनेक  शब्द अनेक अर्थ
कैसे ध्यान सब का रहे
हैं  अनेक तारे अर्श में
गिनने की कोशिश कौन करे |
आशा