08 जून, 2012

है नई डगर

अनजान नगर 
नई डगर 
सभी अजनवी
सभी कुछ नया
कोई अपना नजर नहीं आता
जो भी पहले देखा सीखा
सब पीछे छूट गया
हैं यादें ही साथ
पर इसका मलाल नहीं
रीति रिवाज सभी भिन्न
नई सी हर बात
अब तक रच बस नहीं पाई
फिर भी अपनी सारी इच्छाएं
दर किनारे कर आई
जाने कब अहसास
अपनेपन का होगा
परिवर्तन जाने कब होगा
अभी तो है सभी अनिश्चित
इस डगर पर चलने के लिए
कई परीक्षाएं देनीं हैं
मन पर रखना है अंकुश
तभी तो कोई कौना यहाँ का
हो पाएगा सुरक्षित
जब सब को अपना लेगी
सफल तभी हो पाएगी 
है यह इतना सरल भी नहीं
पर वह जान गयी है
हार यदि मान  बैठी
लंबी पारी जीवन की
कैसे खेल पाएगी |
आशा

06 जून, 2012

निडर


हो निडर घूम रही   
जंगल  की पनाह में 
आवाज से दहशत भरती
लोगों के दिलों  में
पर क्या वह माँ नहीं 
उसे ममता का 
लेशमात्र भी अहसास नहीं ?
पर ऐसा कुछ नहीं
हैं ममता के रूप अनेक
वह  भी  है  सतर्क माँ 
सहेज रही अपने बच्चों को 
सचेत कर रही उन्हें
 आने वाले खतरों से 


वह  जानती है अभी छोटे हैं
  दुनिया की रीत नहीं जानते
यहाँ के रास्ते नहीं पहचानते
यदि इधर उधर भटक गए
सुरक्षा होगी कठिन
शायद इसी लिए 
  साथ लिए फिरती है
यदि कोई अंदेशा हो 
सचेत उन्हें करती है |

आशा 



04 जून, 2012

है वह कौन




हूँ एक अनगढ़ खिलोना
बनाया सवारा बुद्धि दी
किसी अज्ञात शक्ति ने
पर स्वतंत्र न होने दिया
बुद्धि जहाँ हांक ले गयी  
उस ओर ही खिंचता गया
राह की बाधाओं से
पार पाने के लिए
सफलता और असफलताओं के
  बीच  ही झूलता रहा
जीवन के रंग उन्हें मान
बढता जा रहा हूँ 
अंधकार में डूबा
उन्हें नहीं मानता
प्रकाश की खोज में
अग्रसर होना चाहता
है वह कौन
जो संचालित करती मुझे
उसे ही खोज रहा हूँ
हर कठिन वार सह कर भी
 बचता  रहा हर बार
जीना चाहता हूँ
क्यूं कि हूँ मनुष्य
वही बना रहना चाहता हूँ |

आशा 

01 जून, 2012

यादें भर शेष रहा गईं

 सपनों की चंचलता बहुत कुछ
सागर की उर्मियों सी
भुला न पाई उन्हें
कोशिश भी तो नहीं की |
बार बार उनका आना
हर बार कोई संदेशा लाना
मुझे बहा ले जाता
किसी अनजान दुनिया में |
उसी दुनिया में जीने  की ललक
बढ़ने लगती ले जाती  वहीँ
 अचानक एक ठहराव आया
 मन के गहरे सागर में |
फिर चली सर्द हवा
उर्मियों ने सर उठाया
आगे बढ़ीं टकराईं
पर हो हताश लौट आईं |
यह ठहराव बदल गया
समूंचे जीवन की राह
अब न कोई स्वप्न रहे
ना ही कभी याद आए |
भौतिक जीवन की
 जिजीविषा की
बेरंग होते  जीवन की
 यादें भर शेष  रह गईं |

आशा

29 मई, 2012

कैसा मोह कैसी माया


कहीं कुछ टूट गया
हुई चुभन इतनी
सुकून भी खोने लगा
है उदास
 नन्हों की बाँहें थामें
डगर लंबी पार की
कठिन वार जीवन में झेले
उनको ही सवारने में
क्षमता से अधिक ही किया
जो भी संभव हो पाया
क्या रह गयी कमीं
उनकी परवरिश में
जो दो शब्द भी
मुंह से ना निकले
तपस्या के बदले में
है आज घरोंदा खाली
जाने क्यूं मन भारी
अहसास नितांत अकेलेपन का
मन को टटोल रहा
है कैसा मोह कैसी माया 
चोटिल उसे कर गया |


26 मई, 2012

जीवन एक लकीर सा


जीवन ने बहुत कुछ सिखाया
पर आत्मसात करने में
 बहुत देर हो गयी
हुए अनुभव कई
कुछ सुखद तो कुछ दुखद
पर समझने में
 बहुत देर हो गयी
साथ निभाया किसी ने
कोई  मझधार में ही छोड़ चला
सच्चा हमदम न मिला
लगा जीवन एक लकीर सा
जिस पर लोग चलते जाते
लीक से हटाना नहीं चाहते
रास्ता कभी सीधा तो कभी
टेढ़ी मेढ़ी  पगडंडी सा
 सांस खुली हवा में लेते
कभी घुटन तंग गलियों की सहते
दृष्टिकोंण फिर भी सबका
एकसा नहीं होता
दृश्य वही होता
पर प्रतिक्रियाएँ भिन्न सब की
लेते दृश्य उसी रूप में
जो मन स्वीकार कर पाता
लकीर जिंदगी की
कहाँ से हुई प्रारम्भ
और कहां  तक जाएगी
जान नहीं पाया
है छोर कहाँ उसका
समझ नहीं पाया |

आशा

22 मई, 2012

एक अहसास


बैठ पार्श्व में अपनत्व जताया
केशपाश में  ऐसा बंधा
जाने की राह ना खोज पाया
कुछ अलग सा अहसास हुआ
परी लोक में विचरण करती
उनकी  रानी सी लगी
उसी पल में जीने लगी
पलकें जब भी बंद हुईं
वही दृश्य साकार हुआ
पर ना जाने एक दिन
कहीं गुम हो गया न लौटा
ना ही  कोई समाचार आया
एकाकी जीवन बोझील  लगा
हर कोशिश बेकार गयी
है जाने कैसी माया
उस अद्भुद अहसास से
दूर रह नहीं पाती
मोह छूटता नहीं
आस मिटती नहीं
इधर उधर चारों तरफ
वही उसे नजर आता
जैसे ही दूरी हटना चाहती 
अंतर्ध्यान हो जाता
सालने लगे अधूरापन व रिक्तता
हर बार यही विचार आता
क्या  सत्य हो पाएगा
 वह दृश्य  कभी |