02 मई, 2013

बेचैन मन


 सारे पखेरू उड़ गए
हुआ घोंसला खाली
ठूंठ अकेला रह गया
छाई ना हरियाली
आँगन सूना देख
मेरा मन क्यूं घबराए ना
क्यूं गाऊँ मैं गीत
मुझे कुछ भी भाए ना
सभी व्यस्त अपने अपने में
समय का अभाव बताते
रहते अपनी दुनिया में
उनकी ममता जागे ना
मैं अकेली रह गयी
अक्षमता का बोध लिए
पर डूबी माया मोह में
यह बंधन छूटे ना
यह जन्म तो बीत चला
तेरी पनाह में
है अटूट विशवास तुझ पर
पर मन स्थिर ना रह पाता
अभी है यह हाल
आगे न जाने क्या होगा |

30 अप्रैल, 2013

अनुगूंज

जहां देखती हूँ 
वहीं तुझे पाती हूँ 
तेरी गूँज सुनाई देती 
 सृष्टि के कण कण में |
 ऊंची नीची पगडंडी पर 
पहाड़ियों से धिरी वादी में 
बढ़ता कलरव परिंदों का 
मन हुआ गाने का 
उनका साथ निभाने का
जैसे ही स्वर छेड़ा
अपने ही स्वर गूंजे 
प्रत्यावर्तित हुए |
विचारों में खोई आगे बढ़ी
एकांत में बैठ सरिता तट पर 
देखा उर्मियाँ टकराती चट्टान से 
तभी विशिष्ट ध्वनी होती 
कानों में गुंजन करती |
मैंने पाया एक सुअवसर 
प्रकृति के सानिध्य का 
सुना संगीत साथ देते 
कलकल ध्वनि करते जल का |
 तभी दूर से आती ध्वनि 
व्यवधान बनी कर्ण कटु  लगी
टूटी श्रंखला विचारों की
सोचा यह कहाँ से आई |
अनायास बादल गरजे 
बादलों के  गर्जन तर्जन की
टकराई ध्वनि पहाड़ियों से 
हुई प्रत्यावर्तित 
गूँज उसकी तीव्र हुई 
क्या यही अनुगूंज है ?
शब्द नश्वर नहीं होते 
जब भी कुछ कहा जाता 
वे विलीन हो जाते
 किसी निसर्ग में
कहीं न कहीं सुनाई देती 
उनकी अनुगूंज भुवन में 
जिसे हम अनुभव करते 
अनुगूँज जब होती
सत्य जीवन का उजागर होता 
जिसे भौतिक और नश्वर 
जगत न जान पाता |
आशा




28 अप्रैल, 2013

एक बुलबुला

शाम ढले विचरण करता 
जा पहुंचा सरिता तट पर 
वृक्षों की छाँव तले
बहती जल की धारा 
था मौसम बड़ा सुहाना 
मन भी उससे हारा 
वहीं रुका और बैठ गया 
जल में पैर डाल अपने 
अस्ताचल को जाता सूरज 
 अटखेलियाँ जल से  करता 
दृश्य ने ऐसा बांधा 
उठने का मन न हुआ 
सहसा ठहरी दृष्टि 
जल में उठता बुलबुला देख 
पहले था वह नन्हा सा 
फिर बड़ा हुआ और फूट गया 
वह देखता ही रह गया 
वे एक से अनेक हुए 
बहाव के साथ बहे 
थोड़ी दूर  तक गए 
फिर विलीन जल में हुए 
विचारों ने ली करवट 
सिलसिला शुरू हुआ 
जीवन के बिभिन्न पहलुओं  की
सतत चलती प्रक्रिया का 
उसके समापन का 
सृष्टि का यही तो क्रम है 
क्या सजीव क्या निर्जीव में 
उसे लगा खुद का जीवन 
पानी के एक  बुलबुले सा |
आशा





25 अप्रैल, 2013

सुकून खो गया


मैं खोती तो दुःख न होता
राह खोज ही लेती 
मंजिल तक पहुँच मार्ग 
 बना ही लेती |
पर हूँ परेशान इसलिए 
कि मेरा सुकून खो गया है 
अकारण मन बहुत 
बेचैन हो गया है |
अब तो मुस्कुराने पर भी 
अधिभार लगता है
बाहर कदम बढाने पर 
परमिट लगता है |
यदि भूली कोइ प्रमाणपत्र
बहुत शर्म आती है 
पढ़े लिखे होने  का तमगा
 चूंकि माथे पर लगा है |
मुझसे तो वे ही अच्छी हैं 
जो हैं निपट गंवार 
आत्म बल तो है उनमें 
भय नहीं स्वतंत्र विचरण में |
खोखली मान्यताओं ने 
निर्बल बना दिया 
सुकून भी खोज न पाई
जाने कहाँ भूल आई |
आशा



23 अप्रैल, 2013

बदलाव

गर्मीं में ये सर्द हवाएं  
कितनी अजीब लगतीं 
बेमौसम की बरसातें
जीवन अस्तव्यस्त करती |
खेतों में सूखा अनाज था 
सारा गीला हो गया 
किसान की चहरे की  खुशी 
अपने साथ ही निगल गया |
बीमारी ने धर दबोचा
छोटे बड़े सभी को
मौसम में बदलाव 
रास न आया सब को |
जाने क्या है प्रभु की मर्जी 
शान्ति नहीं रहती 
कुछ न कुछ होता रहता है 
सुखानुभूति नहींहोती |
मौसम बदला तेवर बदले
आम आदमी के पर
मन तैयार न हो पाया
हर शय से जूझने को |
आशा




20 अप्रैल, 2013

अद्भुद और विलक्षण

रंगों से खेलता बालक 
तूलिका ले हाथ में 
 तन्मय चित्र बनाने में 
था व्यस्त अपने आप में |
आहट से चौंका
चेहरे पर सवालिया भाव देख 
सकुचाया ,शरमाया 
फिर धीमे से मुस्काया |
बिना कुछ कहे 
अपनी कृति यहीं छोड़ 
खेलने भाग गया 
पर उत्सुकता जगा गया |
जब देखा 
क्या बनाया उसने ?
बड़ा अद्भुद नजर आया
विलक्षण उसे पाया  |
जितनी बार उसे देखता 
जिस भी कौण से देखता
कुछ नया दिखाई देता 
जो मुझे प्रेरणा देता |
बहुत सहेज कर रखा उसे 
नित्य नए चित्र बनाए
मैं खोजने लगा कृतियों में
बालक की प्रतिभा को |
एक दिन वह फिर  आया
अपना भाईचारा जताया 
बने चित्र देखना चाहे 
मैंने सारे आगे कर दिए |
 हर चित्र मनोयोग से देखता 
अपनी प्रतिक्रया भी देता 
जैसे ही वह चित्र देखा 
निशब्द ,देखता ही रह गया |
मैंने ही पूछ लिया 
तुमने यह क्या   बनाया   ?
विशिष्ट चमक से चेहरा दमका 
पर प्रतिउत्तर ना दिया |
हंसा और भाग निकला 
जैसे कह रहा हो 
खुद ही सोच लो 
है क्या इसमें |
आशा










16 अप्रैल, 2013

हो क्यूं उदास

जिसे जाना था चला गया 
हो क्यूं उदास इतने 
छोड़ो सारी बातों को 
जिनसे दुःख उपजे |
वहां जाना अवश्य 
दुआ भी करना 
पर आंसूं न बहाना 
कष्ट उसे ना पहुंचाना |
सूक्ष्म रूप धारण किये
 वह भी तुम्हे निहारता होगा 
याद भी करता होगा 
पर तुम्हें बता नहीं सकता |
जो यादें वह
 पीछे छोड़ गया 
उन्हें जीवित रख
सहज सफर उसका करना
वह लौट तो न पायेगा 
स्मृतियों में उसे
 जीवित रखना |
उसकी हर बात 
जो हंसाती थी
 गुदगुदाती थी 
बहुत सहेज कर रखना |
तब ही वे लम्हे जी पाओगे 
यादें जब ताजा होंगी 
तब अकेले नहीं होगे 
उसके बहुत करीब होगे 
उदासी भूल जाओगे |