03 नवंबर, 2013

कुदरत की माया



सुबह से शाम तक
परिवर्तित होते मौसम में
नज़ारा झील के किनारे का
नौका की सैर का
था अनुभव अनूठा
यूं तो उम्र का तकाजा था
चलना दूभर था
फिर भी कोई  बच्चा
 था मन में छिपा
जो चाहता था
 एक एक जगह देखना
हर उस पल को जीना
जो वहां गुजारा |
यूँ तो बहुत ऊंचाई थी 
फिर भी मन ना माना
चश्मेशाही तक जा पहुंचा 
मीठे जल का स्वाद लिया 
वैसा जल पहले 
शायद ही कभी पिया |
सेवफल  से लदे पेड़
टहनिया झुक झुक जातीं
उनके भार से
मन ललचाता
देखने का प्रलोभन
कम न हो पाता |
पहली बार देखी
केशर की खेती
खुशी का ठिकाना न था
कुछ नया जो जाना था
 समय कम था
जानना बहुत बाक़ी था |
जिग्यासा शांत न हो पाई
रंग बदलते चिनार के पत्ते
हरे पीले फिर लाल होते पत्ते देखे
पर कारण नहीं खोज पाई
मन के बच्चे को समझाया
है यह कुदरत की माया |








01 नवंबर, 2013

दीवाली



दीप मालिका के बिना , सूना लगता ग्राम |
धुप दीप मिष्ठान बिना, है अधूरा अनुष्ठान ||

दीवाली त्यौहार की, धूम न नजर आई |
लक्ष्मीं जी के स्वागत की , जब शुभ घड़ी आई ||

सर्वप्रथम गृहणी सजी ,चमकाया घर द्वार |
की  प्रतीक्षा उत्सुक हो ,कर सोलह श्रृंगार ||

बालक पीछे ना रहे ,झटपट हुए  तैयार |
आए पटाखे फुलझड़ी,लेकर अपने साथ ||

फिर भी कहीं कमी रही ,चहरे रहे उदास |
मंहगाई की मार से ,कुछ बन न पाया ख़ास ||
आशा


24 अक्तूबर, 2013

करवा चौथ पर

करवा चौथ पर

करवा चौथ पर हार्दिक शुभ कामनाएं 
चाँद ने मुह छिपाया
बादलों की ओट में
प्रिय तुम भी
अब तक न आए
जाने कहाँ विलमाए
मैं हूँ परेशान
कब तक राह निहारूं
तुम्हारी और  चाँद की
याद नहीं आई  क्या 
आज करवा चौथ की|
आशा

21 अक्तूबर, 2013

वह और गुलाब


आज पुनः आई बहार
 चटकी कलियाँ
खिले फूल महके गुलाब
बागवान के आँगन में|
मन पर काबू  नहीं रहा
हाथ बढा कर  लेना चाहा
एक फूल उस क्यारी से|
वह तो हाथ नहीं आया
शूल ने ही स्वागत किया
नयनों से अश्रु छलके
उस शूल की चुभन से
फिर भी मोह नहीं छूटा
उस पर अधिकार जमाने का |
बड़ी जुगत से बहुत जतन से
 केशों में जिसको सजाया
दर्पण में देखा 
पूंछ ही लिया
सच कहना  दौनों में से
है कौन अधिक सुन्दर ?
वह पहले तो रहा मौन
फिर  बोल उठा
 हैं दौनों ही
 एक से बढ़ कर एक|
फूल तो फूल ही है
 सुरक्षित कंटक से
 वह है  उससे भी कोमल
 सुन्दर सूरत सीरत वाली
कोई नहीं जिसका  रक्षक |
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18 अक्तूबर, 2013

क्षणिकाएँ

(१)
तकलीफों को गले लगा कर 
सीने में बसा लिया है 
ये हें दोस्त मेरी 
ताउम्र  साथ निभाने का
 वादा जो किया है |
(२)
अन्धकार होते ही
 श्याम रंग ऐसा छाता 
हाथ को हाथ न सूझता 
साया तक साथ न देता 
बेचैन उसे कर जाता |
(३)
इस  गुलाब की महक ही
खींच लाई है आप तक
मैंने राह खोज पाई है
आपके ख्वावगाह तक |
(४)
रिश्ते खून के ताउम्र
जौंक से चिपके रहते
कतरा कतरा रक्त का
चूस कर ही दम लेते |
(५)
चाँद तूने वादा किया था
रोज रात आने का
पर तूने मुंह छिपाया
बादलों की ओट में |
(६)
की तूने वादा खिलाफ़ी
हद हुई नाइंसाफ़ी की
कारण तक न बताया
अपने इस पलायन का |
आशा

15 अक्तूबर, 2013

झूठ नामां



झूठ नामां
सुना था झूठ  के पैर नहीं होते
आज नहीं को कल
मुखोटा उतर जाता है
वह छुप नहीं पाता |
पर अब देख भी लिया
भेट हुई एक ऐसे बन्दे से
थी जिसकी झूठ  से गहरी यारी
इसकी  ही बुनियाद पर उसने
शादी तक रचा डाली
पहले पत्नी दुखी हुई
फिर निभाती चली गयी |
प्रथम भेट में अपने को उसने
 इंजीनियर बता प्रभावित किया
अपने चेहरे मोहरे का
 पूरा पूरा लाभ उठाया |
जब भी मिला किसी से
 बड़े झूठ  के साथ मिला
घर पर तो मुझे वह
 खानसामा ही नजर आया |
पत्नी ने भी बात बनाई
खाना बनाना और खिलाना
इनको बहुत भाता है
तभी तो हैं अवकाश पर
आप लोग जो आए हैं |
एक दिन हम जा पहुंचे
उसके बताए ऑफिस में
बहुत खोजा फिर भी न मिला
तभी एक ने बतलाया
अरे आप किसे खोज रहे  
वह कोइ इंजीनियर न था
फर्जी अंक सूची लाया था
केवल बाबू लगा था |
जब पोल पकड़ी गयी
वह नौकरी भी उसकी गयी
अब है वह बेरोजगार
एक झूठ  हो तो गिनाए कोई
समूचा झूठ  में था  लिप्त
सच से परहेज किये था |
उसने कभी सच बोला ही नहीं
था झूठों का सरदार
केवल  झूठ  का भण्डार |