06 अगस्त, 2014

प्रभाव मन पर



कोरी रही स्लेट
कागज़ भी कोरा
बन न पाए अक्स
मन के आईने पर  |
मन के भेद
जब भी  उजागर होते
लिपि बद्ध  किये जाते
प्रथम दृष्टा वे ही होते |
अश्रुओं की बरसात से
अक्षर धूमिल होने लगते
कागज़ फट जाता
कॉपी के पन्ने सा |
स्लेट की लिखावट मिट जाती
जल से धुल जाती
वह कोरी ही रह जाती
कुछ नया लिखने के लिए |
मन पर अंकित चिन्ह न मिटते
 जो निशान रह जाते शेष
अमित छाप  मन पर छोड़ते 
धूमिल तक नहीं होते |
कभी शूल से चुभते
कभी प्यार से सहारा देते  
सुख दुःख में साथ खड़े
मन के मीत होते |
हर स्वप्न  प्रभावित करता
खुद ही अर्थ निकालना होता 
वे मन में जब तक रहते 
विचार  घुमढ़ते  रहते
आशा

04 अगस्त, 2014

मशीन और मानव









एक मशीन कलपुर्जे अनेक
तालमेल सब में ऐसा
वह सतत सेवा देती
पूरी क्षमता से कार्य करती |
धीरे धीरे पुर्जे घिसते
कार्यक्षमता प्रभावित होती
चाहे जब रुक जाती
चलने में नखरे लगाती |
समय समय पर सेवा चाहती
रखरखाव यदि अच्छा होता
ठीक ठाक बनी रहती
अधिक समय तक सेवा देती |
हाल मनुज का यदि देखें
बहुत साम्य दिखाई देता
उसे भी उपचार चाहिए
आये दिन अवकाश चाहिए |
एक शरीर अवयव अनेक
जब तालमेल आपस में रहता
चंचल चपल बना रहता
जीवन सहज सरल होता |
धीमी गति से वय  बढ़ती
पुर्जे धिसते टूट फूट होती
शरीर चकित थकित सा
सोचता यह क्या हुआ |
कार्य क्षमता धटने लगी
बीमारी खोज ली उसने
बुढापा चुपके से आता है
पर परिवर्तन बड़े लाता है |
बीमारी वृद्धावस्था की
 है आम सभी में
जिसे लग जाती है
जान ले कर ही जाती है |
उसे भी अकारथ  मशीन सा 
बेकार समझा जाता है
सामान्य जीवन के लिए
 अवांछित हो जाता है |