29 अक्तूबर, 2014

कुशल चितेरा



है तू कुशल चितेरा
कई रंग भरता सृष्टि में
जो आँखों को रास आते
हंसते हंसते रुला जाते |
न जाने क्यूं बहुत खोजा
 कोई रंग तो ऐसा हो
जो उससे मेल न खाता हो 
उस में ही घुल जाता हो |

पर एक भी ऐसा न मिला
प्रयत्न आज भी है अधूरा
यह तेरी कूची का  कमाल
या संयोजन बेमिसाल |
हर रंग है कुछ ख़ास 
दीवाना बना जाता 
एक ही धुन लग जाती
 सब में तू ही नजर आता |

कभी एहसास नहीं होता 
 कोई  कमी रही है शेष
सब ऐसे घुल मिल गए है
सृष्टि रंगीन कर गए हैं |
यही चाहत रहती  हर पल
इन रंगीन लम्हों को जियूं
तेरी  अदभुद कृतियों को 
अंतस में सहेज कर रखूँ |
है तू  कुशल चितेरा 
मन पर छा गया है 
दिल् चाहता है 
क्यूँ न तेरी आराधना करूं
तुझ में ही समा जाऊं 
कभी दूर न रहूँ |

आशा

27 अक्तूबर, 2014

सिमटते स्वप्न (छटा काव्य संकलन )

मुझे अपनी नई पुस्तक सिमटते स्वप्न (छटा काव्य संकलन) को आपके सन्मुख   प्रस्तुत कर   बहुत प्रसन्नता हो रही है|

इस पुस्तक में १५५ कवितायेँ हैं |हार्ड बाइंडिंग से सजी है और उसका कवर पेज आपके सन्मुख है |पुस्तक पर अपना अभिमत विद्वान प्रोफेसर डा.बालकृष्ण शर्मा निदेशक सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान विक्रम विश्व विद्यालय ने  दिया  है तथा वरिष्ठ साहित्यकार,पत्रकार एवं कवि श्री प्रकाश उप्पल ने भी अपना अभिमत प्रगट किया है |

नाम पुस्तक -सिमटते स्वप्न
कवयित्री : आशा लता सक्सेना
सर्वाधिकार: आशा लता सक्सेना
सन् : २०१४
मूल्य : २००/-(दो सौ रूपए मात्र )
मुद्रक : कीर्ति प्रिंटिंग प्रेस
गुरुनानक मार्केट के सामने ,फ्री गंज ,उज्जैन(म.प्र,)
फ़ोन:-०७३४-२५३१०४१
९८२७५६०६५६,९८२६६५५६५५
  



25 अक्तूबर, 2014

और मैं खो जाती हूँ





यह प्यार दुलार जब भी पाया
था वह केवल बचपन ही  
आते जाते लोग भी प्यार से बुलाते
हंसते हंसाते बतियाते खेलते खाते खिलाते
कब समय गुजर गया याद नहीं
बस शेष रहीं यादें
बंधन विहीन उन्मुक्त जीवन
तब कभी भय न हुआ
डर क्या होता है तब न जाना
आज हर पल जिसके साए में रहते
फिर क्यूं न याद करें
उस बीते हुए कल को
जब सब अपने थे गैर कोई नहीं
आज होने लगा है एहसास पराएपन का
दिखावटी प्यार जताते घेरा डाले
न जाने कहाँ की बातें करते
अपनत्व जताते अजनवी चेहरों का
पर कभी भी साथ न देते
मतलब साधना कोई उनसे सीखे
यही विडम्बना जीवन की
खींच  ले जाती मुझे बीते कल में
उनींदी पलकों में पलते बचपन के सपनों में
और मैं खो जाती हूँ यादों की दुनिया में |
आशा


22 अक्तूबर, 2014

एकाधिकार




प्रीत की यह रीत नहीं
अनजान नहीं अब वह भी
फिर भी खोई रहती है
हर पल उस में ही  |


उसे वही चाँद चाहिए
जीने का अरमां  चाहिए
हार अपनी कैसे माने
उसे सहन न कर पाती

बचपन में सब बंट जाता था
क्रोध कभी भी ना आता था
भूले से यदि आया भी
माँ बड़े प्यार से समझाती थी  |

तुम बड़ी हो त्यागी बनो
मेरा तेरा नहीं करो 
सब को देकर ही खाओ 
प्यार पनपता जाएगा |

पर अब सर्वे सर्वा है
कुछ भी छिपा नहीं उससे
अपना प्यार किसी से बांटे
कल्पना तक कर  नहीं पाती
अपना एकाधिकार चाहती |
आशा

20 अक्तूबर, 2014

अदभुद है

 मन की मुराद मिली है
 बड़ी बात है
प्यार की सौगात मिल गयी
अनोखा उपहार है
पर एक सवाल व्यर्थ सा
मन में आया है
ऐसा क्या था  जो तुम्हें
 मुझ तक ले आया
प्यार तो यह है नहीं
 बहुत सच है 
है कोई बंधन पहले का 
या मुझे कोई 
 कर्ज चुकाना है
कभी उधारी की  याद नहीं आता
फिर यह उलझन कैसी
एहसास अनोखा सा है 
लगता है 
अपनी  कहानी में
कोई नया मोड़  आया है
यूं तो है
 कहानी पुरानी 
वही राजा वही रानी
कभी मिलन 
कभी विछोह
कुछ भी तो नया नहीं
क्यूं आज फिर
 दूध में
 उबाल आया है
गोद में बेटी के कदम
धर में पालने का आगमन
पूर्व जन्म के  कर्ज का
अद्भुद एहसास हुआ है
जिसे पूर्ण  करने का
 मन बनाया है |