15 दिसंबर, 2014

चंचला


· बहती रही
चंचला नदिया सी
मेरी बिटिया |

गीत नदी का
जब गुनगुनाती
खुश हो जाती |


है ही चंचल
चपल नदिया सी
लगती प्यारी |

बहता जल
कलकल निनाद
जीवन धन |
आशा

12 दिसंबर, 2014

उड़ान



 दिन चढ़े सूरज सर पर
हुई धुन सवार
सुर्खाव के पंख लगाकर 
की कोशिश पंछी सी `
ऊंची उड़ान भरने की
छूने को नभ में निर्मित
आकृतियों को
रूप बदलते बादलों को
पर उड़ न सकी पटकी खाई
मन कुपित गात शिथिल
फिर भी ललक उड़ने की
गिर कर ही उठना सीखा था
उंगली पकड़ चलना सीखा था
फिर उड़ने में भय कैसा ?
उलझन बढी पर मन न डिगा
यही जज्बा कर गया सचेत
थकावट का नाम न रहा
तन मन हुआ उत्फुल्ल
 विश्वास की सीड़ी
 इतनी कमजोर भी नहीं
साहस का  है साथ
 लक्ष्य भी निर्धारित है
तब असफलता से भय कैसा
 सफलता जब  कदम चूमेंगी
उस पल की कल्पना ही
मन स्पंदित कर देती 
एक नया जोश भरती |

10 दिसंबर, 2014

हमारे आस पास



वृक्ष की छाँव ,विश्राम पथिक का
है आवश्यक |
कटते वृक्ष ,गरमी का आलम
दुखी पथिक |
निर्मल जल ,लहलहाते वृक्ष
अप्रदूषित हैं |
पर्यावरण ,हमारे आस पास
निर्मल रहे |
वृक्ष लगाओ ,बच्चे सा अपनाओ
हरियाली को |
फूले पलाश ,झुमके लटकाता
अमलताश |
खून खराबा ,प्रकृति है उदास
आतंक फैला |
बर्फ से दबा ,शहर दम तोड़े
वृक्ष गवाह |
स्वच्छ  प्रदेश ,है देश की गरिमा 
अछूती रहे |
झूला डाला है नीम की डाली पर 
आओ ना प्रिये
इंतज़ार है निराश न करना 

दिन न  कटे |
दोपहर में छाँव वट वृक्ष की 
पुकार रही |
है हरियाली नदिया के किनारे 
सुखद लगे |


आशा  

08 दिसंबर, 2014

सुख दुःख

साथी सुख के
पल भर में दूर
देख दुःख में |

सुख मन का
तिरोहित हो गया

  दुःख को देख|

सुख दुःख में
जब छिड़ा संग्राम
दुःख ही जीता |

                                                                         मन दुखी है
                                                                   दर्पण है ही झूठा
                                                                       सच न बोला |

 सुख क्षणिक 
दुखों की है दूकान 
जीना कठिन |

आशा