26 जनवरी, 2015

अस्थिर मन



खिला कमल भ्रमर हुए हैं मुग्ध
आकर्षित हैं
वाणी मधुर है स्मित मुस्कान
दिल जीतती
कोयल काली आम की डाली पर
सुर मधुर
मन चंचल उड़ता पक्षियों सा
आकाश छूता
होती हताशा जब कुछ न पाता
बेचैन होता
वीणा के सुर हो गए बेसुर
कहाँ अटके
चांदनी रात महकी रातरानी
नहीं हैरानी
आधा है चाँद रात भी है हसीन
जब तुम हो
दौनों ने मिल तिनके चुनचुन
नीड़ बनाया
खाली धरोंदा उड़ गईं चिड़ियाँ
वीरान हुआ |


23 जनवरी, 2015

कान्हां तेरी लीला न्यारी

कान्हां तेरी लीला न्यारी
ममता तुझ पर जाए वारी
चुपके से घर में घुसआया
दधि खाया मुंह में लपटाया
खुद खाया मित्रों को खिलाया
राह चलत मटकी फोड़ी
गोपी से की बरजोरी
वह भी चुपके चुपके
कदम्ब की छाँव तले
 ग्वाल वाल संग लिए
रास रचाया झूम झूम
बंसी की मधुर धुन सुन
गोपियाँ सुध बुध भूलीं
दौड़ी भागीआईं
तेरी ही हो कर रह गईं
तुझ से लगाया नेह अनूठा
माया मोह का बंधन छूटा
अपना आपा खो बैठीं
एक इच्छा मन में जागी
नेह बंधन ऐसा हो
जन्म जन्म तक बंधा रहे  |
आशा






21 जनवरी, 2015

बंधन



प्रभु तूने यह क्या किया
जन्म मृत्यु के बंधन में बांधा
 भवसागर तरना मुश्किल हुआ
कोई आकर्षण नहीं यहाँ |

जब जन्म हुआ तब कष्ट हुआ
जैसे तैसे सह लिया
बाद में जो कुछ सहा
उससे तो कम ही था |

बचपन  फिर भी बीत गया
रोना हंसना तब ही जाना
 भार पड़ा जब कन्धों पर
जीना दूभर हो गया |

तब भी शिकायत थी तुमसे
पर समय न मिला उसके लिए  
ज्यों ज्यों कमली भीगती गयी  
मन पर भार चौगुना हुआ |

बीती जवानी वृद्ध हुआ
बुढ़ापे ने कहर बरपाया
ना मुंह में दांत न पेट में आंत
असहाय सा होता गया |

जाने कब तक जीना होगा
रिसते घावों को सीना होगा
भवसागर के बंधन  से
कब छुटकारा होगा |

जाने कब मृत्यु वरन करेगी
इस जीवन से मुक्ति मिलेगी 
चाहे तो पत्थर बना देना
मनुष्य का जन्म  न देना भगवान |
आशा







07 जनवरी, 2015

बर्फ ही बर्फ


बर्फ ही बर्फ
नहीं पिघल रही
जमती झील |

ओस से ढके
कोमल पत्ते यहाँ
हैं परेशान |


ओले पड़ते
टीन पर गिरते
शोर मचाते |

मजा आगया
बर्फबारी देखते
पहाड़ों पर |

घना कोहरा
पगडंडी न  दिखी
हुई टक्कर |

दूर दृष्टि से
कुछ नहीं सूझता
छाया कोहरा |

आशा

06 जनवरी, 2015

रात दिन


कलह होती
 जब भी  दिन रात
कटुता आती |
सुबह शाम
 है व्यस्तता अधिक
नहीं विश्राम |
दिन ही होता
और निशा न होती 
तो क्या होता ?
दिन में काम
व्यस्तता अधिक ही 
रात्रि विश्राम |
दोपहर में
तीव्रता लिए धूप
झुलसा गई |


ढलती शाम
छिपा अस्ताचल में 
आदित्य ही है |
रात अन्धेती
 उड़ते उडगन
चमक रहे|

 सुन्दर समा
 सन्नाटे में रात के 
बंधता जाता|
जुगनू गाता
 अहसास दिलाता
 नहीं अकेले |

आशा


05 जनवरी, 2015

उड़ी पतंग

उडी पतंग 
जीवन डोर बंधी 
रुक न सकी |
वो कट गई 
आसमां में भटकी 
कच्चा था मांझा
थपेड़े सहे 
खुले आसमान में 
नन्हीं जान ने |

बेटी पतंग
उड़ चली पी संग
हुई अनंग |

कटती डोर
वायु ने झझकोरा
कोई  न ठौर |

फटी पतंग
आसमान से गिरी
उलझी डोर |


आशा

03 जनवरी, 2015

वरण नए चोले का


एक दिन वह सो गया 
लोगों ने कहा वह मर गया 
मृत्यु का वरण किया
और अमर हो गया 
पर सच यह  नहीं क्या ?
आत्मा ने घर छोड़ा
वस्त्र बदले मोह त्यागा 
नया चोला धारण किया 
नवीन गृह प्रवेश किया 
अनादी अनंत आत्मा 
कभी मृत नहीं होती 
बारबार वस्त्र बदलती 
नया चोला धारण करती 
 अनंत में विचरण करती
जब मन होता उसका
गोद किसी की भरती
कोई घर आबाद करती 

आशा