30 जनवरी, 2015

जिन्दगी की जंग में



जिन्दगी की जंग से  
जूझते जो नित  
बिरले ही  जीत पाते हैं
उसकी व्यथाओं से  | 
सेहरा जीत का 
चाहते सभी 
 चन्द  ही भाग्यशाली  
 जी पाते  ये पल |
तिलतिल मरना 
उन्हें रास नहीं आता 
एकाएक जीने की आशा 
बलबती मन में |
पाकर स्वप्न सुन्दरी 
सजाते हैं एक आवरण 
अपने  इर्दगिर्द
अनुभव सजाना चाहते
आसपास सभी |
सफलता  चूमती  उनके कदम 
घोडी चढ़
वह उच्च शिखर 
  छूना  चाहते सभी 
पर चन्द लोग ही
 जी पाते है 
ऐसे अदभुद  क्षण 
आशा





29 जनवरी, 2015

फागुन आने को है

उड़ने लगा गुलाल
फागुन आने को है
राधा ने किया सिंगार
वसंत जाने को है
गोपियाँ ताकती राह
बाँसुरी बजने को है
यमुना में आया उछाल
लहरें तट छू रहीं
कान्हां मयहोने को
बेकल होती जा रहीं
पूरे होने को हैं अरमान
फागुन आने को है |
आशा

28 जनवरी, 2015

संपदा



बंजर भूमि
वनस्पति के बिना 
दुखी है प्रजा !

स्वप्न में आये 
हरियाये पल्लव 
मन हर्षाये ! 

वनसंपदा 
मूल्यवान जब हो 
देश सफल !

रंग बिरंगी 
है फूलों की टोकरी 
उपवन में ! 

जड़ें जमाये 
वनस्पति देश की 
पश्चिम में भी !

जलसंपदा 
बहुत मूल्यवान 
सबके लिए ! 

पहचान है 
हरीतिमा हमारी
सबसे न्यारी !

पीत वासना
सुमुखी हरीतिमा 
मन को छूती ! 

आशा

26 जनवरी, 2015

अस्थिर मन



खिला कमल भ्रमर हुए हैं मुग्ध
आकर्षित हैं
वाणी मधुर है स्मित मुस्कान
दिल जीतती
कोयल काली आम की डाली पर
सुर मधुर
मन चंचल उड़ता पक्षियों सा
आकाश छूता
होती हताशा जब कुछ न पाता
बेचैन होता
वीणा के सुर हो गए बेसुर
कहाँ अटके
चांदनी रात महकी रातरानी
नहीं हैरानी
आधा है चाँद रात भी है हसीन
जब तुम हो
दौनों ने मिल तिनके चुनचुन
नीड़ बनाया
खाली धरोंदा उड़ गईं चिड़ियाँ
वीरान हुआ |


23 जनवरी, 2015

कान्हां तेरी लीला न्यारी

कान्हां तेरी लीला न्यारी
ममता तुझ पर जाए वारी
चुपके से घर में घुसआया
दधि खाया मुंह में लपटाया
खुद खाया मित्रों को खिलाया
राह चलत मटकी फोड़ी
गोपी से की बरजोरी
वह भी चुपके चुपके
कदम्ब की छाँव तले
 ग्वाल वाल संग लिए
रास रचाया झूम झूम
बंसी की मधुर धुन सुन
गोपियाँ सुध बुध भूलीं
दौड़ी भागीआईं
तेरी ही हो कर रह गईं
तुझ से लगाया नेह अनूठा
माया मोह का बंधन छूटा
अपना आपा खो बैठीं
एक इच्छा मन में जागी
नेह बंधन ऐसा हो
जन्म जन्म तक बंधा रहे  |
आशा






21 जनवरी, 2015

बंधन



प्रभु तूने यह क्या किया
जन्म मृत्यु के बंधन में बांधा
 भवसागर तरना मुश्किल हुआ
कोई आकर्षण नहीं यहाँ |

जब जन्म हुआ तब कष्ट हुआ
जैसे तैसे सह लिया
बाद में जो कुछ सहा
उससे तो कम ही था |

बचपन  फिर भी बीत गया
रोना हंसना तब ही जाना
 भार पड़ा जब कन्धों पर
जीना दूभर हो गया |

तब भी शिकायत थी तुमसे
पर समय न मिला उसके लिए  
ज्यों ज्यों कमली भीगती गयी  
मन पर भार चौगुना हुआ |

बीती जवानी वृद्ध हुआ
बुढ़ापे ने कहर बरपाया
ना मुंह में दांत न पेट में आंत
असहाय सा होता गया |

जाने कब तक जीना होगा
रिसते घावों को सीना होगा
भवसागर के बंधन  से
कब छुटकारा होगा |

जाने कब मृत्यु वरन करेगी
इस जीवन से मुक्ति मिलेगी 
चाहे तो पत्थर बना देना
मनुष्य का जन्म  न देना भगवान |
आशा