22 अगस्त, 2015

बाल लीला


माखन चोर के लिए चित्र परिणाम
खिड़की खुली थी किया प्रवेश वहीं से
द्वार खुला था उधर से  न आये
क्या बिल्ली से सीख ली थी
या नक़ल उसकी की थी |
छलांग लगा छींका गिराया
मटकी फोड़ दही गिराया
कुछ खाया कुछ बिखराया
पकडे गए तब रोना आया |
अकारण शोर मचाया
 सब को धमकाया
चलो आज  माँ के पास
न्याय मैं करवा कर रहूंगी
प्रति दिन यह शरारत न सहूंगी |
वह भोली नहीं जानती
 है व्यर्थ शिकायत
माँ कान्हां को नहीं मारती
डंडी से यूं ही धमकाती
फिर ममता से आँचल में  छिपाती |
 है कान्हां भी कम नहीं
कहता माँ यह है झूठी
इसकी बातें नहीं सुनो
तुम मेरा विश्वास करो |
अब वह जान गई है  
कोई प्रभाव न होना नटखट पर
बालक है भोला भाला
मनमोहक अदाओं वाला |
यही है बाल लीला कान्हां की
मृदु मुस्कान मुख पर उसकी
सारा क्रोध बहा ले जाती
,वह जमुना जल सी हो जाती |
आशा


20 अगस्त, 2015

एक दिन और बीता



हताशा जीवन की के लिए चित्र परिणाम
एक दिन और बीता
कुछ भी नया  नहीं हुआ
वही सुबह वही शाम
उबाऊ जीवन हो गया
फीकापन पसरा हुआ
सारा उत्साह खो  गया
समस्त रंग फीके हुए
किसी का रंग नहीं चढ़ा
रस्म अदाई रह गई
मन का कुछ भी नहीं हुआ
ना ही दाल का छोंक
ना स्वाद किसी सब्जी में
ना ही रस का  समावेश
इस छोटी सी जिन्दगी में
बेरंग  बेमतलब का बोझ
उठाए घूम रहा दिल में
प्रसन्नता से कोसों दूर 
भागती दौड़ती जीवन शैली
है एक ही अहसास
कि साँस चलती  रही
थमने की जुर्रत न की  
शक्तिहीन दुर्बल शरीर 
मन भी भटकने  लगा
क्षार क्षार  जीवन हुआ
रह गया इन्तजार रात का
चूंकि अन्धकार से भय न हुआ |
आशा

10 अगस्त, 2015

मतदान के पहले


हैं जुझारू कर्मठ
दिन  रात जुटे  प्रचार में
लम्बी लिस्ट वादों की लिए
जूझ रहे विजय के लिए
पार्षद पद पाने के लिए
सदावर्त जगह जगह खोले
निमंत्रण खाने का देते  
नमक अपना खिला रहे है
मतदाता को पटाने को
जेब अभी  खाली होगी
आगे पांचो ऊँगली घी में होंगी  
यही मन में बसा हुआ है
वादे कसमें जता रहे हैं
सत्य निष्ठ हैं बता रहे हैं 
प्रचार अभी सब पर हावी
पर जनता जान गई है
नेताओं को पहचान गई है
कोई कितने भी वादे  करे
पारदर्शिता का दम भरे
उन्हें  अपना पेट भरना है
जनता जहां थी वहीं रहेगी
मर मर कर जीती रहेगी
कोई भी सत्ता में आए
रही सदा और रहेगी आगे भी
जनता की झोली खाली
यूं ही छली जायेगी
आम जनता बेचारी |