14 फ़रवरी, 2016
13 फ़रवरी, 2016
आजाद कलम
आजाद कलम
उन्नत विचार
मन में लिए विश्वास
पैर धरातल पर पड़े
जीवन में आया निखार
भाव मन के स्पष्ट हुए
छलकपट से दूर हुए
स्वतंत्रता के पुरोधा
बन्धनों से मुक्त हुए
सत्य सत्य ही होता है
बदल नहीं सकता
तथ्य परख लेखन से
फिर परहेज क्यूं ?
परिणाम चाहे जो भी हो
अंजाम से भय क्यूं
झूट के पांव नहीं होते
फिर उस पर आश्रित क्यूं ?
जब सत्य उजागर होता है
मन का कलुष धोता है
फिर जो भी लिखा जाता है
सदियों तक उसे
याद किया जाता है
लेखन किसी दबाव में
जिसने भी किया
कलम बेच डाली
चंद सिक्कों के लिए
कुछ भी हाथ नहीं आया
आत्मग्लानि केसिवाय
अशांति के शिकंजे में
खुद को फंसा पाया |
आशा
11 फ़रवरी, 2016
लम्बी बीमारी के बाद
निष्ठुरता के पुरोधा
क्या है सोच जानना कठिन
अंतस की हल चल का
यदि कभी कुछ सहा होता
कष्ट का अनुभव किया होता
तभी अनुभव होता
कष्ट किसे कहा जाए
यदि संवेदना के दो बोल भी
भूले से निकले होते
बंजर मन के कौने में
कई कमल खिल जाते
व्यय कितना भी किया जाए
पर मृदु भाषण से दूरी हो
नौकरों की भीड़ लगी हो
सब भार नजर आते
अपनापन कहीं गुम हो जाता
आडम्बर सा लगता
एक शब्द विष से बुझा
गहराई तक छू जाता
तन मन से की गई सेवा
किसी पर कर्ज नहीं होती
वे लम्हे याद सदा रहते
गैरों में व अपनों में
अंतर स्पष्ट करते
लम्बी रोगों की दुकान
उबाऊ होती जाती
एक कहावत याद आती
काम सब को होता प्यारा
बिना काम वह होता नाकारा
पृथ्वी पर बोझ नजर आता
जीवन से मुक्ति चाहता |
आशा
कष्ट किसे कहा जाए
यदि संवेदना के दो बोल भी
भूले से निकले होते
बंजर मन के कौने में
कई कमल खिल जाते
व्यय कितना भी किया जाए
पर मृदु भाषण से दूरी हो
नौकरों की भीड़ लगी हो
सब भार नजर आते
अपनापन कहीं गुम हो जाता
आडम्बर सा लगता
एक शब्द विष से बुझा
गहराई तक छू जाता
तन मन से की गई सेवा
किसी पर कर्ज नहीं होती
वे लम्हे याद सदा रहते
गैरों में व अपनों में
अंतर स्पष्ट करते
लम्बी रोगों की दुकान
उबाऊ होती जाती
एक कहावत याद आती
काम सब को होता प्यारा
बिना काम वह होता नाकारा
पृथ्वी पर बोझ नजर आता
जीवन से मुक्ति चाहता |
आशा
09 फ़रवरी, 2016
सपना
मेरी धारणा बन गई है
मन में बस गई है
सपने में जब कोई
अपना आता है
उसका कोई
उसका कोई
संकेत देना कुछ कहना
किसी आनेवाली घटना से
किसी आनेवाली घटना से
सचेत कर जाता है
यही ममत्व ह्रदय में
यही ममत्व ह्रदय में
अपना घर बनाता है
पर कभी स्वप्न
अजीब सा होता है
तब वह केवल
भ्रम होता स्वप्न नहीं
अक्सर याद नहीं रहता
जब भी याद रह जाता
एक बात उसमें भी होती
मुख्य पात्र कहानी का
जाने अनजाने मैं ही होती
कभी नदी पार करती
कभी शिखर पर चढ़ती
पा कर कप बड़ा सा
पुरूस्कार स्वरुप
अपने पास सजोती
गर्व से खुश होती |
आशा
आशा
07 फ़रवरी, 2016
मित्रता दिवस
दादी ने गुल्लक दिलवाई
बचत की आदत डलवाई
मैंने भी इसको अपनाया
चंद सिक्के जमा किये
फ्रेन्डशिप डे है आनेवाला
मन ने कहा क्यूं न खुद
फ्रेन्ड शिप बैण्ड बनाऊँ
अपने मित्रों को पहनाऊँ
छोटे छोटे उपहारों से
मनभावन जश्न मनाऊँ
सोचा पैसे मां से मांगूं
या पापा से हाथ मिलाऊँ
पर सब यही कहते
व्यर्थ है यह दिन मनाना
हमने तो कभी मनाया नहीं
फिजूल है समय गवाना
पर मन नहीं माना
अब याद गुल्लक की आई
मेरी बचत काम आई
तोड़ी गुल्लक पैसे मिल गए
स्वयं ही मित्रता धागे बनाए
अपने मित्रों को पहनाए
छोटे छोटे उपहार दिए
इस दिन को कामयाव बनाया
जिसने भी इन्हें देखा
सृजनात्मक्ता का नाम दिया
अपनी बचत के सदुपयोग पर
खुशियों का जखीरा आया |
आशा
04 फ़रवरी, 2016
पत्थर नीव के
दृढ इरादे की चमक
जब भी देखी हैआनन् पर
मस्तक श्रद्धा से झुकने लगता है
अनुकरण का मन होता है
लगन विश्वास और इच्छा शक्ति
होती हैं अनमोल
कुछ लोग ही जानते हैं
इनकी महिमा से हैं परिचित
रह कर अडिग इन पर
लम्बी दूरियां नापते हैं
कठिनाई होती है क्या
ध्यान नहीं देते
लक्ष्य तक पहुँचते ही
भाल गर्व से होता उन्नत
तभी महत्त्व है इनका
सफलता यूं ही नहीं मिलती
दृढ संकल्प और आत्मबल
होते निहित इसमें
करती इमारत बुलंद
मजबूती नीव की
ये हैं नीव के पत्थर
आवश्यक सफलता के लिए
जीवन में आई कठिनाइयों से
उभर पाने के लिए |
आशा
कठिनाई होती है क्या
ध्यान नहीं देते
लक्ष्य तक पहुँचते ही
भाल गर्व से होता उन्नत
तभी महत्त्व है इनका
सफलता यूं ही नहीं मिलती
दृढ संकल्प और आत्मबल
होते निहित इसमें
करती इमारत बुलंद
मजबूती नीव की
ये हैं नीव के पत्थर
आवश्यक सफलता के लिए
जीवन में आई कठिनाइयों से
उभर पाने के लिए |
आशा
02 फ़रवरी, 2016
कोहरा
चहु और कुहासा छाया
सर्दी ने कहर ढाया
हाथों को हाथ नहीं सूझता
प्रकृति ने जाल बिछाया
धुंद की चपेट में वादियाँ
श्वेत चादर से ढकी वादियाँ
शिशिर का संकेत देती वादियाँ
मौसम की रंगीनियाँ सिमटी यहाँ
सैलानी यहाँ वहां नजर आते
बर्फबारी का आनंद उठाते
स्लेज गाड़ी पर फिसलते
बर्फ के खेलों का आनंद लेते
जब कोहरे की चादर बिछ जाती
कुछ भी दिखाई नहीं देता
मन पर नियंत्रण रख कर
अपने पड़ाव तकआते
चाय कॉफी में खुद को डुबोकर
रजाई में दुबक कर
अपने को गर्माते
मौसम का आनंद लेते
कोहरे से भय न खाते |
आशा
शिशिर का संकेत देती वादियाँ
मौसम की रंगीनियाँ सिमटी यहाँ
सैलानी यहाँ वहां नजर आते
बर्फबारी का आनंद उठाते
स्लेज गाड़ी पर फिसलते
बर्फ के खेलों का आनंद लेते
जब कोहरे की चादर बिछ जाती
कुछ भी दिखाई नहीं देता
मन पर नियंत्रण रख कर
अपने पड़ाव तकआते
चाय कॉफी में खुद को डुबोकर
रजाई में दुबक कर
अपने को गर्माते
मौसम का आनंद लेते
कोहरे से भय न खाते |
आशा
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