03 मार्च, 2016

ठहराव



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चलता जीवन
निर्मल जल के झरने सा
ठहराव जिन्दगी में
गंदे जल के डबरे सा
पहला रंगीनियों से भरा
 हैं अक्षय जो
पर ठहराव उसमें
 डबरे की दुर्गन्ध सा
घुमंतू जीवन में ठहराव
कदाचित सुख देता
जहां ठहर जाते
 वहीं बसेरा होता
अधिक समय ठहराव  
उन्हें भी उबाऊ लगता
जल्दी डेरा उठा
आगे जाने का मन होता
एक वय के बाद
सभी ठहराव चाहते
डबरे से आती दुर्गन्ध
तब भी न चाहते
बीते कल की सुनहरी यादें
सजोए रखते
उनमें ही जीते
कल्पना की उड़ान भरते
 नया सृजन करते
जीवन की रंगीनियाँ
ठहराव में भी अनुभव करते 
यह ठहराव जीवन में 
 बहुत मायने रखता 
यदि सही उपयोग होता 
डबरे से तलाव  हो जाता 
जीवन तनाव मुक्त हो 
रंगीनियों से भर जाता |

आशा






29 फ़रवरी, 2016

शिक्षा


शिक्षा के आयाम अनंत
मिलती शिक्षा जीवन पर्यंत
कण कण से मिलती शिक्षा
इसका कोई न अंत |

 सर्व प्रथम मां की शिक्षा
फिर शिक्षक से ली शिक्षा
कुछ अनुभवों ने सिखाया
इसके बिना मिली न दीक्षा |

है ज्ञान गुणों की खान
शिक्षा सब का है अधिकार
जो भी  इससे  रहाअनजान
बिना ज्ञान वह पशु सामान |


आशा

27 फ़रवरी, 2016

अपशब्द

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अपशब्दों का प्रहार
इतना गहरा होता
घाव प्रगाढ़ कर जाता
घावों से रिसाव जब होता
अपशब्द कर्णभेदी हो जाते
मन मस्तिष्क पर
बादल से मडराते
छम छम जब बरसते
नदी नाले उफान पर आते
अश्रु धारा थम न पाती
अनुगूंज अपशब्दों की
वेगवती उसे कर जाती
तभी तो कहा जाता है
जब भी बोलो
मधुर ही बोलो
कटु बचन से दूर रहो
मन में कटुता ना घोलो 


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आशा

25 फ़रवरी, 2016

श्याम सलोने

श्यामल गात

सुदर्शन सुन्दर
मनमोहक छवि तेरी
रोम रोम में बसी
भाव भंगिमा तेरी
तेरा मुकुट
तेरी बाँसुरी
सब से अलग
हैं केवल  तेरे ही 

श्याम सलोने 
मां के दुलारे       
वह जाए तुझ पर वारी 
जब माखन खाए गिराए 
मनवा को भा जाए

नयनों में आ बसी 
अनमोल भंगिमा तेरी 
श्याम सलोने
तेरी कमली तेरी लाठी
तेरी धैनूं तेरे सखा
मुझको बहुत सुहाय 
तू सबसे अलग लगे 
मन से छवि न जाय |
आशा
Asha Lata Saxena's photo.s

24 फ़रवरी, 2016

चंद हाईकू

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देह दीवानी
हुई रूप गर्विता
सत्य न जानी|

कर्मठ जीव
व्यस्त बना रहता
सब पा जाता |

प्यारी बिटिया
जल से तृप्त करे
बृद्ध जनों को |

ईंट उठाती
मेहनत करती
झोली में बच्चा |

प्यार जताता
भोला सा बचपन
चतुष्पद से |


रिसते जख्म
प्यार का मलहम
दिल को छुए |


दो नन्हें चूजे
माता की पनाह में
हैं सुरक्षित |

आशा




21 फ़रवरी, 2016

है रीत यही इस जग की

वानप्रस्थ आश्रम के लिए चित्र परिणामyauvan के लिए चित्र परिणामजन्म के लिए चित्र परिणाम
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है रीत कैसी  इस जग की 
परिवर्तन में देर नहीं लगती 
बचपन जाने कहाँ खो जाता 
यौवन की दहलीज पर आ 
वह भी न टिक पाता 
उम्र यौवन की
अधिक नहीं होती 
जल्द ही दस्तक
 वानप्रस्थ की होती 
यह भी विदा ले लेती 
अंतिम पड़ाव आते ही 
मोह भंग होने लगता 
और जाने कहाँआत्मा
 देह त्याग भ्रमण करती 
देह विलीन हो जाती 
पञ्च तत्व में मिल जाती 
केवल यादें रह जातीं 
जाने वाला चला जाता 
बीता कल पीछे छोड़ जाता 
आगमन गमन का 
क्रम निरंतर चलता 
संसार की चक्की में
 सभीको पिसना होता
इससे कोई न बचता 
जन्म मरण दोनो ही 
पूर्व निर्धारित होते 
जन्म का पता होता 
पर मृत्यु कहाँ से
कैसे कब वार करेगी 
नियंता ही जानता 
 पर अपने कर्मों का हिसाब
 सभी को देना होता 
इस लोक में या परलोक में 
है रीत यही इस जग की
 कुछ भी नया नहीं है
आशा




20 फ़रवरी, 2016

मुक्तक


नाचता मोर के लिए चित्र परिणाम
दीवानगी इस हद तक बढी
भूल गई वह कहाँ चली
यदि किसी अपने ने देखा
सोचेगा क्यूँ यहाँ खड़ी  |
 |
मन मोर थिरकने लगता
मंथर गति से नाचता
पा कर अपनी संगिनी
अपना सब कुछ वारता |


ना पाल मोह इस देह से
ना मद से ना ही मत्सर से
 परमात्मा से नेह लगा
भर जाएगा सुकून से   |
आशा