24 अप्रैल, 2016

कृषक



सूखा खेत
फसल कट गई
थका कृषक ताक रहा
अपने आशियाने को
कच्चा छोटा सा टापरा
खिड़की पर लटकता
फटा परदा
उसमें से कोई झाँक रहा
यहाँ वहां फिरते कुटकुट
अपनी उपस्थिति दर्ज कराते
बच्चे देख देख मुस्काते
द्वारे पर मूंज की मचिया
महमानों के लिए बिछाई
दरी उस पर डाली ऐसे
सोफे का कवर हो जैसे
मधुर आवाज कोयल की
जब तब सुनाई देती
आगाज होने लगता
अमवा पे आए बौर का
मुंह पर हलकी सी
चमक आजाती
कैरियों को बेच कर
कुछ तो पैसे मिले जाएंगे
यही सोच विचार में डूबा
वह देखता उस पेड़ को
आर्थिक रूप से कमजोर
पर मन का धन है उसके पास
है कृषक आशा पर जीता है
ऐसे ही खुश हो लेता है
आशा


21 अप्रैल, 2016

आस्था का महाकुम्भ


 उज्जैन सिंहस्थ के लिए चित्र परिणाम

है अद्भुद दृश्य अवन्तिका का |दूर दूर तक फैला है महा कुम्भ मेला क्षेत्र |यह तीन जोन में बटा है |
ध्वज पताकाओं से चिन्हित किया गया है |जहां भी दृष्टि जाती है ध्वज  ही ध्वज दिखाई देते  हैं |
        बहुत ही सुन्दर समा हो गया है एक विशेषता यह है कि सभी पताकाएं भगवा रंग में रंगी हैं पर आकार प्रकार भिन्न हैं |लहराती हुई पताकाएं ऎसी लगती हैं जैसे आसमान छूना चाहती हैं |तरह तरह से पंडाल सजे हैं|
     इस पर्व का प्रारंभ पेशवाइयों से होता है  |उन में साधू संत  अपनी ध्वजा के साथ जुलुस के रूप में निकलते हैं| संतों के साथ उनके भक्त भी निकलते हैं |बहुत अद्भुद दृश्य होता है |दूर दूर से लोग पेशवाई देखने आते हैं |इस कुम्भ में १० पेशवाई निकाली गई |
उनलोगों का नगर में स्थान स्थान पर स्वागत किया गया | सनातन धर्म को मानने वाले साधू संत जगह जगह जा कर समाज में जागृति फैलाते है सौहार्द्र का सन्देश देते हैं व धर्म में आस्था को गहरा करते हैं |भिन्न भिन्न जगह से आए लोग एक साथ प्रेम भाव से रहते हैं यह समभाव का परिचायक है|पुण्यसलिला क्षिप्रा को मोक्ष् दायनी भी कहा जाता है |हर १२ वर्ष बाद सिंहस्थ का आयोजन इस कारण होता है कि ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय जब अमृत निकला उसे पाने के लिए दैत्यों व देवताओं में छीना झपटी होने लगी |तब अमृत का कलश छलका और जहां जहां उसकी बूंदे गिरीं वहाँ  सिंहस्थ का आयोजन किया जाने लगा |यह परम्परा बहुत समय से चली आ रही है |

इस में आनेवाले साधू संत अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं व भक्तों को अपने धर्म की जानकारी भी वक्तव्यों के माध्यम से देते हैं |
   कई जगह हवन आदि का आयोजन होता है अन्न क्षेत्रों में सब एक साथ मिल कर प्रसादी गृहण करते हैं
|यहाँ आ कर इतना अच्छा लगता है कि मन वहीं  ही राम जाता है |इस बार ५ शाही स्नान होंगे |पहला शाही स्नान आज २२ अप्रेल को सम्पन्न हो गया दूसरा  स्नान ९ मई को होगा |यह साधू संतों व भक्तों का समागम एक मांह तक चलेगा |


आशा

जल

.........................
१-
बढी दुविधा
जल बिन मीन सी
हुई बेहाल |
२-
तपती धूप
जल कहाँ से लाऊँ
कुछ सूझे ना |
३-
है हेंड पंप
पेड़ की छाँव तले
जाते न बने |
४-
नीर भरत
हिया मेरा कम्पित
छलके नैन |
५-
प्यास न बुझे
शीतल जल बिन
अब क्या करे |
आशा


18 अप्रैल, 2016

आज है यह हाल कल न जाने क्या होगा


आज है यह हाल
कल न जाने क्या होगा
प्यासी धरती है
सूखे हैं ताल तलैया
जीवन हुआ बेहाल
बूँद बूँद जल का
रखना पड़ता है हिसाब
आज है यह हाल
कल न जाने या होगा
ह्रदय हुआ विदीर्ण धरा का
दरारें दीखतीं यहाँ वहाँ
थलचर जलचर
हैं परेशान हाल
बहुतों ने त्यागे प्राण
जल के बिना
सारी फसल चौपट हो गई
वर्षा के अभाव में
रिक्त पड़े खलियान आज
कल न जाने क्या होगा
वन में हरियाली तिरोहित हुई
पीले पत्तों का है अम्बार
अल्प वर्षा अत्यधिक विदोहन
कर रहा बेहाल
सारी समस्या
मानवजन्य या प्राकृतिक
है तो समस्या ही
आज है यह हाल तो
कल न जाने क्या होगा
तभी तो आवश्यकता है
बूँद बूँद जल संचय की
तभी कल सवर पाएगा
कष्टों का अम्बार न होगा |
आशा

16 अप्रैल, 2016

गागर


·

१-
कुए की ओर
गागर धर शीश
गोरिया चली |
२-
ठंडा जल है
हो गई आत्मा तृप्त
मटका धन्य |
३-
रोचक शैली
गागर में सागर
अच्छी लगती |
४-
रेशम डोर
चांदी के कलश हैं
उठ न पाएं |
५-
तपती धूप
मटका रीत गया
भरती कैसे |
आशा


13 अप्रैल, 2016

शिकायत

है शिकायत के लिए चित्र परिणाम
ए तकदीर मेरी 
है मुझे शिकायत तुमसे 
क्यूं असफल सदा रहता हूँ 
उसका बोझ लिए फिरता हूँ 
भाग्य मेरा नहीं चेतता
सुख से दूर मुझे करता 
हूँ बाध्य सोचने को 
ऐसा क्या गलत किया मैंने 
जो प्रतिफल भोग रहा हूँ 
सारे यत्न व्यर्थ हो गए 
मर मर कर जी रहा हूँ 
व्यथित हूँ अकारथ हूँ 
पृथ्वी पर भार हो गया हूँ 
अपना गम किससे बांटूं 
सोच हुआ है कुंद 
तकदीर मेरी
 तुम कब जागोगी 
कब तक आखिर
 सुप्त रहोगी 
यदि यही हाल रहा
 होगा अकारथ जीवन मेरा 
तुम्हीं बताओ मैं क्या करू
और कितनी परीक्षा लोगी |
मेरी  कठिनाई दूर करोगी
आशा

12 अप्रैल, 2016

चांदनी


 चाँद और चांदनी के लिए चित्र परिणाम

हूँ रौशनी तुम्हारी
मेरा अस्तित्व नहीं तुम्हारे  बिना
तुम चाँद मै चांदनी
यही जानती सारी दुनिया
प्रारंभ से आज तक
तुम मुझमें ऐसे समाए
अलग कभी ना हो पाए
साथ हमारा है सदियों पुराना
तुम जानते हो मै जानती हूँ
है यही एक सच्चाई
हमें जुदा करने के
 समस्त यत्न असफल रहे
तारे टिमटिमाते रहते
काली अंधेरी रात में
होने लगते धूमिल से
जब हम से मिलते
खिड़की से झांकता बालक
बहुत गौर से तुम्हें देखता
चौदह कलाएं देख तुम्हारी
प्रश्न तुम्ही से करता
तुम हर दिन तिल तिल बढ़ते हो
पूर्ण रूप धारण करते हो
तुमसे ही यह कैसी उजास
हूँ तुम्हारी पूरक
सारी धरा दूधिया होजाती
जब पूरणमासी आती
तुम अटखेलियाँ करते
जल की उत्तंग तरंगों से
मैं भी साथ तुम्हारा देती
पीछे न रहती
यही बात मन में रहती
है यह रिश्ता बहुत पुराना
जैसा है वैसा ही रहे
  तुमसे अलग न होने दे |
आशा